छह विनाशकारी दोष जो राजा को छोड़ने चाहिए

कामंदकी नीतिसार के अनुसार, वासना, क्रोध, लोभ, निर्दयता, अहंकार और दर्प जैसे छह शत्रु (षड्रिपु) किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से एक शासक के पतन का कारण बनते हैं। इन्हें त्यागकर ही राजा सच्चे सुख और समृद्धि की प्राप्ति कर सकता है। इस लेख में इन छह दोषों के प्रभाव, ऐतिहासिक उदाहरण और उनके समाधान पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।


छह विनाशकारी दोष जो राजा को छोड़ने चाहिए


षड्रिपु: छह विनाशकारी दोष जो राजा को छोड़ने चाहिए

हर शासक की यह इच्छा होती है कि उसका राज्य सुखी, समृद्ध और स्थिर बना रहे। लेकिन अगर राजा स्वयं अपनी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण नहीं रखता, तो वह अपने राज्य का भी विनाश कर देता है। कामंदकी नीति सार में बताया गया है कि षड्रिपु (छह दोष) – वासना, क्रोध, लोभ, निर्दयता, अहंकार और दर्प शासक के सबसे बड़े शत्रु होते हैं। इन्हें त्यागकर ही कोई भी राजा वास्तविक आनंद और स्थायित्व प्राप्त कर सकता है।

"जो व्यक्ति अपने भीतर के शत्रुओं को जीत लेता है, वही सच्चे अर्थों में विजयी होता है।"


षड्रिपु क्या हैं और ये कैसे नाश करते हैं?

वासना (काम)

✔ वासना व्यक्ति की बुद्धि और निर्णय क्षमता को नष्ट कर देती है।
✔ राजा यदि स्त्रियों या विलासिता में अधिक आसक्त हो जाए, तो वह अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है।
✔ महाभारत में दुर्योधन ने वासना के कारण द्रौपदी के साथ अन्याय किया, जिससे कौरव वंश समाप्त हो गया।

उदाहरण: राजा नहुष, जो अप्सरा इंद्राणी की वासना में अंधे होकर देवताओं से शत्रुता मोल ले बैठे और अंततः पतन को प्राप्त हुए।


क्रोध (राग-द्वेष)

✔ क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है और उसकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म कर देता है।
✔ एक क्रोधित शासक त्वरित निर्णय लेकर अपने ही राज्य को हानि पहुंचा सकता है।
✔ रामायण में रावण अपने क्रोध और प्रतिशोध की भावना के कारण ही समूल नष्ट हुआ।

समाधान: राजा को चाहिए कि वह धैर्य और सहनशीलता का अभ्यास करे, जिससे वह सही निर्णय ले सके।


लोभ (अत्यधिक लालच)

✔ लोभ से व्यक्ति अनुचित साधनों का उपयोग करने लगता है।
✔ इतिहास गवाह है कि लालची शासक हमेशा पराजित हुए हैं।
✔ महाभारत में शकुनी ने लोभवश दुर्योधन को जुए की आदत डाल दी, जिसके कारण कौरवों का नाश हुआ।

उदाहरण: जयचंद का लोभ, जिसने विदेशी आक्रमणकारियों को आमंत्रित किया और स्वयं नष्ट हो गया।


निर्दयता (हिंसा और प्रताड़ना का आनंद)

✔ निर्दयी राजा अपनी प्रजा से घृणा और विद्रोह अर्जित करता है।
✔ चंगेज खान और तैमूर जैसे क्रूर शासक अंततः इतिहास में कुख्यात बन गए।
✔ एक अच्छा शासक न्यायप्रिय होता है, न कि निर्दयी।

उदाहरण: अशोक ने कलिंग युद्ध की भीषण हिंसा के बाद अहिंसा का मार्ग अपनाया, जिससे वह महान कहलाए।


अहंकार (मान)

✔ अहंकारी शासक स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझने की भूल कर बैठता है।
✔ वह अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता, जिससे उसका पतन सुनिश्चित हो जाता है।
✔ रावण का अहंकार ही उसकी मृत्यु का कारण बना।

समाधान: विनम्रता और संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर अहंकार से बचा जा सकता है।


दर्प (अत्यधिक आत्ममुग्धता)

✔ जो शासक स्वयं को अजेय समझने की भूल करता है, वह अपनी ही गलतियों से नष्ट हो जाता है।
✔ सिकंदर महान ने अपनी शक्ति के दर्प में भारत पर आक्रमण किया, लेकिन उसे लौटना पड़ा।
✔ एक राजा को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए, जिससे वह यथार्थ को समझ सके।

"जो व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता, वह सुधार की संभावना से भी वंचित हो जाता है।"


षड्रिपुओं से मुक्त होने के उपाय

वासना पर नियंत्रण कैसे रखें?

✔ सत्संगति और संयम का अभ्यास करें।
✔ कामशक्ति को सृजनात्मक कार्यों में लगाएं।

क्रोध को कैसे शांत करें?

✔ योग और ध्यान का अभ्यास करें।
✔ क्षमा और सहनशीलता को अपनाएं।

लोभ से बचाव कैसे करें?

✔ संतोष और त्याग का अभ्यास करें।
✔ धर्म और समाज की सेवा में रुचि लें।

निर्दयता से बचने के लिए क्या करें?

✔ न्याय और दया का संतुलन बनाएं।
✔ दूसरों की पीड़ा को समझने का प्रयास करें।

अहंकार को कैसे त्यागें?

✔ आत्ममूल्यांकन करें और सलाह स्वीकारें।
✔ दूसरों के विचारों का सम्मान करें।

दर्प से मुक्ति कैसे पाएं?

✔ ज्ञान की खोज करें और वास्तविकता को समझें।
✔ अपने कार्यों और निर्णयों की समीक्षा करें।


एक शासक के लिए आत्मसंयम क्यों आवश्यक है?

कामंदकी नीति सार के अनुसार, षड्रिपुओं का त्याग करना ही वास्तविक सुख और सफलता का मार्ग है। एक अच्छा शासक वही है जो इन दोषों को पहचानकर उन पर विजय प्राप्त करे। जो राजा अपने भीतर के शत्रुओं को जीत लेता है, वही दीर्घकाल तक सत्ता में बना रहता है और अपनी प्रजा को भी न्याय और समृद्धि प्रदान करता है।

"आत्मसंयम ही सच्ची शक्ति है, और विनम्रता ही सच्ची महानता।"


FAQ

Q1: क्या हर व्यक्ति को षड्रिपुओं से बचना चाहिए या सिर्फ शासकों को?
हर व्यक्ति को इन दोषों से बचना चाहिए, लेकिन शासक के लिए यह और भी आवश्यक है क्योंकि उसकी प्रवृत्तियाँ पूरे राज्य को प्रभावित करती हैं।

Q2: क्या किसी एक दोष में पड़ना भी हानिकारक है?
हाँ, यदि कोई व्यक्ति एक भी दोष को अपनाता है, तो धीरे-धीरे बाकी दोष भी उसे घेर लेते हैं।

Q3: क्या इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं जहाँ शासकों ने षड्रिपुओं पर विजय प्राप्त की हो?
हाँ, राजा हरिश्चंद्र, सम्राट अशोक और महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्तियों ने संयम और त्याग को अपनाकर महानता प्राप्त की।


कामंदकी नीति सार हमें सिखाता है कि राजा को केवल बाहरी शत्रुओं से नहीं, बल्कि अपने भीतर के षड्रिपुओं से भी लड़ना होता है। जो व्यक्ति इन दोषों को त्यागकर धर्म और नीति का पालन करता है, वही सच्चा विजेता और सच्चा शासक कहलाता है।

"जिसने स्वयं को जीत लिया, उसने संसार को जीत लिया!"

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