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Vedanta Darshan: अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत की तुलनात्मक विवेचना

Vedanta Darshan: Advaita, Dvaita और Vishishtadvaita की गहराई से विवेचना

वेदांत दर्शन के तीन प्रमुख स्तंभों – अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत – की प्रमुख शिक्षाओं, अंतरों और भारतीय दर्शन में उनके महत्व को जानें।


परिचय

भारतीय दर्शन की गहराइयों में झाँकने पर हमें एक ऐसा सागर मिलता है जो ज्ञान, तर्क और आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है। इस विशाल सागर में वेदांत दर्शन एक ऐसी धारा है जिसने न केवल भारतीय चिंतन को, बल्कि वैश्विक आध्यात्मिक जिज्ञासा को भी गहराई से प्रभावित किया है। उपनिषदों के अंतिम भाग होने के कारण, वेदांत ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा (व्यक्तिगत चेतना) के स्वरूप एवं उनके संबंध की पड़ताल करता है। इस दार्शनिक यात्रा में तीन प्रमुख विचारधाराएँ उभरीं – अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत – जो ब्रह्म और जीव के संबंध को अपने-अपने दृष्टिकोण से व्याख्यायित करती हैं। यह लेख इन तीनों दर्शनों की गहन पड़ताल करता है, उनके मूल सिद्धांतों, अंतरों और भारतीय दर्शन में उनके स्थायी योगदान को उजागर करता है।

वेदांत दर्शन की पृष्ठभूमि

‘वेदांत’ का शाब्दिक अर्थ है "वेदों का अंत" या "वेदों का सार"। यह भारतीय दार्शनिक परंपरा की सबसे प्रभावशाली और प्रतिष्ठित शाखाओं में से एक है। इसका मूल उपनिषदों में निहित है, जो वेदों के अंतिम भाग हैं और आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार माने जाते हैं। इनमें ब्रह्म और आत्मा की प्रकृति, जगत के रहस्य और मोक्ष के मार्ग पर गहन चिंतन किया गया है। समय के साथ इन गूढ़ शिक्षाओं की व्याख्या की आवश्यकता हुई, जिससे वेदांत की विभिन्न शाखाओं का विकास हुआ। ‘ब्रह्मसूत्र’, जिसे वेदांत सूत्र भी कहा जाता है, वेदांत दर्शन का एक अन्य महत्वपूर्ण आधार ग्रंथ है, जो उपनिषदों के सिद्धांतों को तार्किक रूप से प्रस्तुत करता है।


मुख्य बिंदु:

इस लेख में हम निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे:

  • अद्वैत वेदांत: शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित यह दर्शन आत्मा और ब्रह्म की अद्वैतता (गैर-द्वैत) पर बल देता है।

  • द्वैत वेदांत: मध्वाचार्य द्वारा स्थापित यह मत ब्रह्म और जीव के मध्य शाश्वत भेद को स्वीकार करता है।

  • विशिष्टाद्वैत वेदांत: रामानुजाचार्य द्वारा प्रवर्तित यह मत ब्रह्म और जीव के बीच विशिष्ट एकता या योग्य अद्वैतता का प्रतिपादन करता है।


अद्वैत वेदांत: "एकमेवाद्वितीयम्" – सत्य एक है, दूसरा नहीं

आदि शंकराचार्य ध्यानमग्न – अद्वैत वेदांत का प्रतीक”

अद्वैत वेदांत, जिसके प्रमुख प्रतिपादक आदि शंकराचार्य (788–820 ई.) थे, भारतीय दर्शन की सबसे प्रभावशाली विचारधाराओं में से एक है। "अद्वैत" का अर्थ है "गैर-द्वैत" या "द्वित्व का अभाव"। इसके अनुसार परम सत्य, जिसे ब्रह्म कहा जाता है, अद्वितीय और अविभाज्य है। जगत में दिखाई देने वाली विविधताएँ माया (अज्ञान का भ्रम) के कारण प्रतीत होती हैं।

  • ब्रह्म की प्रकृति: ब्रह्म निर्गुण (गुणरहित), निराकार (रूपरहित) और अपरिवर्तनीय है। इसका स्वरूप सत्-चित्-आनंद (सत्य-चेतना-आनंद) है।

  • आत्मा और ब्रह्म की एकता: आत्मा वास्तव में ब्रह्म से अभिन्न है। अज्ञान के कारण यह भिन्न प्रतीत होती है। ज्ञान के माध्यम से जब यह भ्रम मिटता है, तब आत्मा ब्रह्म को पहचान लेती है।

  • माया का सिद्धांत: माया वह शक्ति है जो ब्रह्म को जगत के रूप में प्रकट करती है। यह न तो पूर्णतः सत्य है, न ही पूर्णतः असत्य – यह भ्रम है। जैसे रस्सी में साँप का भ्रम होता है, वैसे ही ब्रह्म में जगत का।

  • मोक्ष का मार्ग: मोक्ष आत्मा द्वारा अपने वास्तविक स्वरूप – ब्रह्म – की पहचान है। यह ज्ञान ("अहं ब्रह्मास्मि") के माध्यम से प्राप्त होता है, जिससे जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।

उदाहरण:
एक घड़े में आकाश और बाहर का आकाश भिन्न प्रतीत होते हैं, परंतु वास्तव में वे एक ही हैं। घड़ा टूटने पर यह भेद मिट जाता है। उसी प्रकार आत्मा और ब्रह्म का भेद भी अज्ञान के कारण है।

"ज्ञान ही परम मुक्ति है।"


द्वैत वेदांत: "तत् त्वम् असि" नहीं, "सः अन्यः, अहं अन्यः" – वह अलग है, मैं अलग हूँ

मध्वाचार्य – द्वैत वेदांत के संस्थापक


मध्वाचार्य (13वीं शताब्दी) द्वारा प्रतिपादित द्वैत वेदांत, अद्वैत के विपरीत, ब्रह्म और जीव के मध्य शाश्वत भेद पर बल देता है। "द्वैत" का अर्थ है "द्वैतवाद" या "द्वित्व"।

  • ईश्वर की सर्वोच्चता: भगवान विष्णु को परम सत्य माना जाता है। वे सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और गुणों से परिपूर्ण हैं।

  • जीव और ईश्वर का भेद: यह दर्शन पाँच प्रकार के शाश्वत भेद स्वीकार करता है:

    1. ईश्वर और जीव के बीच

    2. एक जीव और दूसरे जीव के बीच

    3. जीव और जड़ पदार्थ के बीच

    4. ईश्वर और जड़ पदार्थ के बीच

    5. एक जड़ पदार्थ और दूसरे जड़ पदार्थ के बीच

  • भक्ति का महत्व: मोक्ष का मार्ग भक्ति है। ईश्वर की कृपा से ही जीव मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

  • कर्म और पुनर्जन्म: जीव को कर्मानुसार फल मिलता है और वह पुनर्जन्म के चक्र में बंधा रहता है जब तक कि ईश्वर की कृपा से मुक्त न हो जाए।

उदाहरण:
सेवक और स्वामी सदा भिन्न रहते हैं। सेवक स्वामी की सेवा करता है और उस पर आश्रित होता है। उसी प्रकार जीवात्मा भगवान विष्णु की सेवक है।

"भक्ति ही मुक्ति का द्वार है।"


विशिष्टाद्वैत वेदांत: "यस्य आत्मा शरीरम्" – जिसकी आत्मा ही शरीर है


रामानुजाचार्य – विशिष्टाद्वैत वेदांत के मार्गदर्शक

रामानुजाचार्य (1017–1137 ई.) द्वारा प्रतिपादित विशिष्टाद्वैत वेदांत अद्वैत और द्वैत के मध्य सेतु का कार्य करता है। "विशिष्टाद्वैत" का अर्थ है "विशेषित अद्वैत"।
  • ब्रह्म: अंतर्यामी और आधार: ब्रह्म ही परम सत्य है, जिसमें जीव और जगत विशेषण के रूप में विद्यमान हैं। वह सभी का अंतर्यामी और आधार है।

  • जीव और जगत: ब्रह्म के अंग: जीव और जगत ब्रह्म से भिन्न नहीं, अपितु उसके अंग हैं – जैसे शरीर आत्मा का।

  • भक्ति और ज्ञान का समन्वय: मोक्ष के लिए भक्ति और ज्ञान दोनों आवश्यक हैं।

  • सगुण उपासना: ब्रह्म की उपासना सगुण रूप में (विशेषतः विष्णु) प्रेम और समर्पण के साथ की जाती है।

उदाहरण:
शरीर और आत्मा अभिन्न होते हैं – शरीर आत्मा पर आश्रित होता है। उसी प्रकार जीव और जगत ब्रह्म पर आश्रित हैं।

"प्रेम और ज्ञान से परमात्मा को पाओ।"


वेदांत के तीनों दर्शनों में अंतर




वेदांत दर्शन की विविध शाखाएँ – एक तुलनात्मक दृष्टिकोण

विशेषता

अद्वैत वेदांत

द्वैत वेदांत

विशिष्टाद्वैत वेदांत

ब्रह्म की प्रकृति

निर्गुण, निराकार, अद्वितीय

सगुण, साकार, सर्वोच्च

सगुण, साकार, अंतर्यामी व आधार

जीव-ब्रह्म संबंध

तादात्म्य (पूर्ण एकता)

भेद (शाश्वत भिन्नता)

विशिष्ट एकता (अंश-अंशी संबंध)

जगत की प्रकृति

माया (भ्रम)

सत्य, ब्रह्म से भिन्न

ब्रह्म का शरीर

मोक्ष का मार्ग

ज्ञान (आत्म-ज्ञान)

भक्ति (समर्पण)

भक्ति व ज्ञान का समन्वय

प्रमुख आचार्य

आदि शंकराचार्य

मध्वाचार्य

रामानुजाचार्य



भारतीय दर्शन में वेदांत का महत्व

वेदांत दर्शन ने भारतीय चिंतन, संस्कृति, कला, साहित्य और सामाजिक मूल्यों को गहराई से प्रभावित किया है। इसकी विविध शाखाओं ने भक्ति आंदोलन को जन्म दिया और धार्मिक विचारों को एक नई दिशा प्रदान की। आज भी वेदांत दर्शन विश्वभर के दार्शनिकों और आध्यात्मिक साधकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।


FAQs

प्रश्न: अद्वैत वेदांत के अनुसार माया क्या है?
उत्तर: माया एक ऐसी शक्ति है जो ब्रह्म को जगत के रूप में प्रकट करती है। यह न तो पूर्ण सत्य है, न ही पूर्ण असत्य – यह भ्रम है।

प्रश्न: द्वैत वेदांत में मोक्ष कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: मोक्ष का मार्ग भक्ति है। भगवान विष्णु के प्रति प्रेम और समर्पण के माध्यम से ही मुक्ति संभव है।

प्रश्न: विशिष्टाद्वैत वेदांत किस प्रकार अद्वैत और द्वैत के बीच समन्वय करता है?
उत्तर: यह ब्रह्म को परम सत्य मानते हुए जीव और जगत को उसके अंग स्वीकार करता है – जैसे शरीर आत्मा पर आश्रित होता है।


निष्कर्ष 

वेदांत की तीन प्रमुख धाराएँ – अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत – भारतीय दार्शनिक चिंतन की गहराई और विविधता को दर्शाती हैं। प्रत्येक का दृष्टिकोण भिन्न है, परंतु लक्ष्य एक ही है – परम सत्य की खोज और मुक्ति की प्राप्ति। इन विचारधाराओं का अध्ययन न केवल दर्शन को समझने में सहायक है, बल्कि जीवन के गूढ़ प्रश्नों पर चिंतन करने और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को दिशा देने में भी मार्गदर्शक सिद्ध होता है।

“आदि शंकराचार्य, मध्वाचार्य और रामानुजाचार्य का एकत्र चित्र” अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत – सत्य की त्रिवेणी के तीन स्रोत

यह सत्य की त्रिवेणी हमें विभिन्न दृष्टिकोणों से वास्तविकता को देखने और समझने की प्रेरणा देती है।

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