राज्य के भीतर के शत्रु | कामंदकीय नीति और शासन

आंतरिक शत्रु  प्राचीन नीति और आधुनिक शासन में सबसे बड़ा खतरा
Keywords -राज्योपघात, कामन्दकीय नीतिसार, आंतरिक शत्रु, आधुनिक शासन व्यवस्था, भारतीय राजनीतिक दर्शन, भ्रष्टाचार और षड्यंत्र

राज्य के भीतर के शत्रु | कामंदकीय  नीति और शासन

विषय सूची

  • परिचय
  • श्लोक और उसका अर्थ
  • कामन्दक की शिक्षा का सार
  • राज्य के भीतर के शत्रुओं का स्वरूप
  • राजनीति में आंतरिक गद्दारी
  • प्रशासन और भ्रष्टाचार
  • सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा
  • आधुनिक शासन व्यवस्था में प्रासंगिकता
  • निष्कर्ष
  • प्रश्न-उत्तर
  • पाठकों के लिए सुझाव
  • संदर्भ

परिचय

किसी भी राज्य की ताकत उसकी सीमाओं पर नहीं, बल्कि उसकी स्थिरता और व्यवस्था पर टिकी होती है। बाहर से आने वाले शत्रुओं से निपटना आसान है क्योंकि वे स्पष्ट रूप से दिखते हैं। लेकिन असली खतरा उन लोगों से है जो राज्य के भीतर बैठकर धीरे-धीरे उसकी नींव को खोखला करते हैं।

प्राचीन नीतिकार कामन्दक ने कामन्दकीय नीतिसार में इस खतरे को विशेष रूप से चिन्हित किया है। उनका स्पष्ट कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राज्य का प्रिय होते हुए भी राज्य-विरोधी कार्य करता है तो वह अपराधी है। चाहे वह अकेले कार्य करे या समूह बनाकर दोनों ही स्थिति में उसका दोष समान है।

आज की राजनीति, प्रशासन और राष्ट्रीय सुरक्षा में यह शिक्षा और भी प्रासंगिक हो गई है। भ्रष्टाचार, गुटबाजी और अंदरूनी गद्दारी वही राज्योपघात हैं जिनसे किसी भी शासन को सबसे अधिक सावधान रहना चाहिए।

श्लोक और उसका अर्थ

राज्योपघातं कुर्याणा ये पापा राजवल्लमाः।
एकैकशः संहता वा दूष्यांस्तान् परिचक्षते॥
(कामन्दकीय नीतिसार 6/9)

  • शब्दार्थ
    • राज्योपघातम् - राज्य का नाश करना
    • कुर्याणाः - जो करते हैं
    • पापाः - दुष्ट लोग
    • राजवल्लमाः -राजा के प्रियजन
    • एकैकशः - एक-एक करके
    • संहताः - मिलकर
    • दूष्यान् - दोषी
    • परिचक्षते - दोष ठहराते हैं

  • भावार्थ:- जो पापी और दुष्ट लोग, राजा के प्रियजन होकर भी, राज्य का नाश करते हैं, वे चाहे अकेले कार्य करें या मिलकर षड्यंत्र रचें, सबको दोषी माना गया है।

कामन्दक की शिक्षा का सार

कामन्दक का मूल संदेश यह है कि
  • शासन की सुरक्षा केवल बाहरी आक्रमण से नहीं, बल्कि आंतरिक गद्दारी से भी सुनिश्चित करनी होती है।
  • प्रियता, पद या संबंध किसी को दोषमुक्त नहीं कर सकते।
  • अपराध का मूल्यांकन इस आधार पर होना चाहिए कि उसने राज्य को कितना नुकसान पहुँचाया है।

राज्य के भीतर के शत्रुओं का स्वरूप

आंतरिक शत्रु किसी भी राज्य या संगठन के लिए बाहरी दुश्मनों से अधिक खतरनाक होते हैं। वे भीतर रहकर धीरे-धीरे उस व्यवस्था की नींव को कमजोर करते हैं। कामन्दक के अनुसार ये शत्रु कई रूपों में सामने आते हैं।

1. भ्रष्ट अधिकारी

जब अधिकारी अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग करके निजी लाभ कमाते हैं, तो वे राज्य की आर्थिक और नैतिक रीढ़ को कमजोर कर देते हैं। जनता का विश्वास टूटता है और व्यवस्था असंतुलित हो जाती है। भ्रष्टाचार को नज़रअंदाज़ करना वास्तव में राज्योपघात को बढ़ावा देना है।

2. षड्यंत्रकारी नेता

राजनीति में ऐसे नेता अक्सर सत्ता पाने की लालसा में अपने ही राज्य को अस्थिर करने से नहीं चूकते। सरकार गिराने की कोशिशें, झूठे वादे और गुप्त समझौते इसी प्रवृत्ति के उदाहरण हैं। यह प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करती है बल्कि समाज में अविश्वास और अस्थिरता भी पैदा करती है।

3. गद्दार सैनिक या कर्मचारी

सेना और प्रशासन राज्य की सुरक्षा के मुख्य आधार हैं। लेकिन जब इनमें से कोई व्यक्ति स्वार्थ या प्रलोभन में आकर गुप्त जानकारी शत्रु तक पहुँचाता है, तो पूरा राष्ट्र संकट में पड़ जाता है। इतिहास गवाह है कि अंदरूनी गद्दारी बाहरी युद्ध से कहीं ज्यादा विनाशकारी सिद्ध हुई है।

4. नौकरशाही में गुटबाजी

नौकरशाही शासन की मशीनरी है, लेकिन जब इसमें गुटबाजी घर कर जाती है तो नीतियाँ केवल कागजों तक सीमित रह जाती हैं। आपसी टकराव और राजनीतिक पक्षधरता के कारण निर्णय धीमे हो जाते हैं और राज्य की प्रगति थम जाती है। यह भी एक प्रकार का राज्योपघात है, क्योंकि इससे जनता तक नीतियों का लाभ नहीं पहुँच पाता।

राजनीति में आंतरिक गद्दारी

आधुनिक राजनीति में आंतरिक गद्दारी का सबसे प्रमुख रूप दल-बदल (Defection) है। यह तब होता है जब किसी दल का निर्वाचित प्रतिनिधि निजी लाभ, सत्ता की लालसा या दबाव के कारण अपने ही दल को छोड़कर विरोधी गुट के साथ मिल जाता है। सतही तौर पर यह सिर्फ़ दल बदलने जैसा लगता है, लेकिन वास्तविकता में यह राज्य की स्थिरता और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा प्रहार है।

१. दल-बदल (Defection)

  • नेता अपने ही दल को छोड़कर विरोधी गुट से जुड़ जाते हैं।
  • यह सत्ता पाने की लालसा या निजी फायदे से प्रेरित होता है

२. जनता के विश्वास का हनन

  • मतदाता जिस विचारधारा और नीतियों पर भरोसा करके नेता चुनते हैं, वही नेता बाद में पार्टी बदलकर विश्वासघात करता है।
  • लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।

३. राजनीतिक अस्थिरता

  • दल-बदल के कारण सरकारें गिरती हैं या अल्पमत में आ जाती हैं।
  • विकास योजनाएँ और नीतियाँ अधर में लटक जाती हैं।

४. निजी लाभ बनाम जनहित

  • नेता अक्सर पद, मंत्रालय या आर्थिक लाभ के लिए दल बदलते हैं।
  • जनहित की जगह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।

५. कामन्दक की प्रासंगिक शिक्षा

  • कामन्दक स्पष्ट कहते हैं कि राज्यप्रिय व्यक्ति भी यदि राज्य का नुकसान करे तो वह अपराधी है।
  • आज दल-बदल करने वाले नेता उसी श्रेणी में आते हैं वे राज्योपघातक हैं।

प्रशासन और भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार किसी भी राज्य की रीढ़ तोड़ देता है। जब अधिकारी अपनी जिम्मेदारी छोड़कर निजी लाभ के लिए काम करने लगते हैं, तो वे वास्तव में राज्योपघात करते हैं। 

भ्रष्टाचार के रूप

१. नीतियों को गलत तरीके से लागू करना

  • अधिकारी योजनाओं और कानूनों को जानबूझकर अपने फायदे या किसी गुट के हित में मोड़ देते हैं।
  • इसका असर सीधा जनता तक पहुँचता है भ्रष्ट नीति-कार्यान्वयन से जनता को राहत नहीं मिलती।

२. गुप्त दस्तावेज लीक करना

  • राज्य की सुरक्षा, आर्थिक या प्रशासनिक नीतियों से जुड़े गोपनीय काग़ज़ात बाहर पहुँचाना।
  • यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा है।

३. जनता से रिश्वत लेना

  • छोटे-छोटे कामों के लिए जनता को अधिकारियों को पैसे देने पड़ते हैं।
  • यह व्यवस्था में अविश्वास पैदा करता है और सामाजिक असमानता को बढ़ाता है।

वास्तविक उदाहरण (भारत में)

  • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2008): नीतियों को तोड़-मरोड़ कर निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाया गया।
  • कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (2010): भ्रष्ट अधिकारियों ने संसाधनों का दुरुपयोग किया।
  • सरकारी दफ़्तरों में रिश्वतखोरी: आज भी पासपोर्ट, भूमि पंजीकरण, पुलिस थानों या नगर निगम दफ़्तरों में आम जनता को रोज़ाना भ्रष्टाचार झेलना पड़ता है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्ट अधिकारी केवल पैसा नहीं चुराते बल्कि राज्य की जड़ों को खोखला करते हैं। वे आंतरिक शत्रु हैं जिनसे कामन्दक की नीति हमें सावधान रहने को कहती है।

सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा

सेना का मुख्य कर्तव्य राष्ट्र की सीमाओं और अखंडता की रक्षा करना है। लेकिन जब कोई सैनिक, अधिकारी या सुरक्षाकर्मी अपने दायित्व से हटकर शत्रु से हाथ मिलाता है, तो यह पूरा राष्ट्र संकट में डाल देता है। 

राज्योपघात के आधुनिक रूप

१. जासूसी (Espionage)

  • सैनिक या कर्मचारी गुप्तचर बनकर शत्रु देश को सैन्य गतिविधियों की जानकारी देते हैं।
  • इससे युद्ध की तैयारी और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से खतरे में पड़ सकती है।

२. गुप्त जानकारी बेचना

  • पैसा या निजी स्वार्थ के लिए रणनीतिक योजनाएँ, हथियारों की स्थिति या सीमाई सुरक्षा की जानकारी बेचना।
  • यह सीधे-सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ है।

३. अनुशासन भंग करना

  • आदेशों की अवहेलना करना, विद्रोह करना या गुटबाज़ी फैलाना।
  • सेना में अनुशासन टूटने से देश की रक्षा क्षमता कमजोर हो जाती है।

परिप्रेक्ष्य के उदाहरण

  • ISI के लिए जासूसी करने वाले केस: भारत में कई बार सैनिकों और कर्मचारियों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को जानकारी देने के आरोप में पकड़ा गया है।
  • BSF के जवानों द्वारा गुप्त सूचना बेचना: हाल के वर्षों में कुछ मामलों में जवानों ने पैसे के लिए संवेदनशील जानकारी बाहर पहुँचाई।
  • अनुशासन भंग के उदाहरण: सोशल मीडिया पर आदेशों की अवमानना या गुटबाज़ी जैसी घटनाएँ भी सेना की छवि और ताकत को नुकसान पहुँचाती हैं।
यह सब कामन्दक की चेतावनी को सिद्ध करता है कि राज्य के भीतर का गद्दार, बाहर के शत्रु से कहीं अधिक खतरनाक होता है।

आधुनिक शासन व्यवस्था में प्रासंगिकता

आज का शासन लोकतांत्रिक ढाँचे पर आधारित है। जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और एक संवैधानिक व्यवस्था के तहत शासन चलता है। लेकिन समस्याएँ वही हैं जिनकी चेतावनी कामन्दक ने दी थी भीतर बैठे गद्दार ही सबसे बड़ा खतरा हैं। 

प्रमुख चुनौतियाँ

१. राजनीति में अस्थिरता

  • दल-बदल और गद्दारी से सरकारें गिर जाती हैं।
  • इससे नीतियाँ अधूरी रह जाती हैं और विकास कार्य बाधित होते हैं।

२. प्रशासन में भ्रष्टाचार

  • अधिकारी अपने कर्तव्यों की जगह निजी लाभ को प्राथमिकता देते हैं।
  • इससे जनता का विश्वास शासन से उठ जाता है और लोकतंत्र कमजोर होता है।

३. राष्ट्रीय सुरक्षा में लापरवाही

  • सेना या सुरक्षाबलों के भीतर से गुप्त जानकारी का लीक होना।
  • सीमाई सुरक्षा और आंतरिक शांति के लिए यह बड़ा खतरा है।

कामन्दक की प्रासंगिक शिक्षा

  • कामन्दक का श्लोक हमें यह याद दिलाता है कि शासन को केवल बाहरी शत्रुओं पर ही नहीं, बल्कि आंतरिक शत्रुओं पर भी नज़र रखनी चाहिए।
  • एक गद्दार नेता, भ्रष्ट अधिकारी या अनुशासनहीन सैनिक राज्य को उतना ही नुकसान पहुँचा सकता है जितना बाहरी आक्रमणकारी।
  • इसीलिए, राज्योपघात को सबसे गंभीर अपराध माना जाना चाहिए।

निष्कर्ष

राज्य का असली दुश्मन अक्सर उसके अपने घर में छिपा होता है। प्राचीन कामन्दक ने जो चेतावनी दी थी, वही आज की राजनीति और प्रशासन के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। राज्योपघात केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक गंभीर खतरा है जिससे निपटना ही अच्छे शासन की कसौटी है।

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: राज्योपघात क्या है?
उत्तर: राज्य को हानि पहुँचाना, उसकी स्थिरता और सुरक्षा को नष्ट करना।
प्रश्न 2: कामन्दक का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: राज्य के प्रियजन भी यदि राज्य का नुकसान करें तो उन्हें अपराधी माना जाए।
प्रश्न 3: आज के समय में राज्योपघात का रूप क्या है?
उत्तर: राजनीति में गद्दारी, प्रशासन में भ्रष्टाचार और सेना में अनुशासनहीनता।


कामन्दकीय नीतिसार केवल एक ग्रंथ नहीं बल्कि शासन की सुरक्षा का दर्पण है। यह हमें सिखाता है कि सत्ता, पद और निकटता से अधिक महत्वपूर्ण है निष्ठा और सत्यनिष्ठा। अगर आपको यह लेख उपयोगी लगा तो इसे अपने मित्रों के साथ साझा करें और कमेंट में बताइए आपके अनुसार आज के भारत में सबसे बड़ा आंतरिक खतरा क्या है?

पाठकों के लिए सुझाव

  • नीतिशास्त्र के प्राचीन ग्रंथ पढ़ें।
  • राजनीति को केवल भावनाओं से नहीं, विवेक से समझें।
  • किसी भी संगठन या संस्था में आंतरिक अनुशासन बनाए रखें।

संदर्भ

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