कभी-कभी खतरा सामने खड़ा होता है, लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते। नीति कहती है - नेतृत्व में यही सबसे बड़ी भूल होती है।
|
|
A minister warning the king about a hidden poison trap in classical Indian style. |
परिचय
कमन्दकीय नीतिसार भारतीय राजनीतिक बुद्धिमत्ता का एक सटीक ग्रंथ है। यह सिर्फ युद्ध की रणनीति नहीं सिखाता, बल्कि उन छिपे खतरों के बारे में भी चेतावनी देता है जो अक्सर हमें दिखाई नहीं देते। यह श्लोक उसी सतर्कता का उदाहरण है। इसमें बताया गया है कि संदेहजनक वस्तुओं, मृत देह या अप्राकृतिक परिस्थितियों में कैसे सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि शत्रु अक्सर इन्हीं माध्यमों से हानि पहुँचाते हैं।
श्लोक, शब्दार्थ और भावार्थ
श्लोक
वेण्यां शवं समाधाय तथा चापि विदूरथम् ।
अहिवृत्तं परिहरेच्छत्रौ चापि प्रयोजयेत् ॥
(कमन्दकीय नीतिसार 7/54)
शब्दार्थ
- वेण्याम् - चोटी/केश संबंधी वस्तु
- शवम् - मृत शरीर
- समाधाय - रखकर/छिपाकर
- विदूरथम् - दूर से चलने वाला (दूरस्थ कार्य)
- अहिवृत्तम् - सर्प के चलने का तरीका (कुटिल/घातक उपाय)
- परिहरेत् - बचना चाहिए
- शत्रौ प्रयोजयेत् - शत्रु इसका उपयोग कर सकता है
भावार्थ
राजनीति में शत्रु अक्सर ऐसे साधन अपनाता है जो सीधे दिखाई न दें-जैसे मृत देह, कपड़ों में छिपाया हुआ विष, अनजान वस्तुएं, या सर्प जैसे घातक उपाय। राजा को ऐसे किसी भी संदिग्ध साधन से सावधान रहना चाहिए और बिना परीक्षण के किसी वस्तु को हाथ नहीं लगाना चाहिए। यह श्लोक चेतावनी देता है कि खतरा हमेशा हथियार नहीं होता, कभी-कभी वह किसी सामान्य-सी वस्तु में छिपा होता है।
नेतृत्व में सतर्कता क्यों आवश्यक है
- नेता का जीवन केवल उसका अपना नहीं होता।
- उसकी सुरक्षा से जुड़े कई लोग, निर्णय और पूरा तंत्र प्रभावित होता है।
- अगर वह एक छोटी सी गलती करता है- जैसे बिना सोचे किसी वस्तु को छू लेना- तो न केवल वह स्वयं खतरे में पड़ता है बल्कि राज्य भी अस्थिर हो जाता है।
कमन्दक लगातार कहते हैं कि सुरक्षा, विवेक और सावधानी नेतृत्व का मूल आधार है।
विषकर्म: प्राचीन काल की छिपी राजनीति
प्राचीन भारतीय राजनीति में विषकर्म यानी विष का प्रयोग एक आम रणनीति थी। यह कई रूपों में होता था:-
- भोजन में
- गहनों में
- कपड़ों में
- मृत देह पर
- हथियारों में
- पूजा की वस्तुओं में
इसलिए नीतिसार चेतावनी देता है कि किसी भी अपरिचित वस्तु को सीधे हाथ लगाना बुद्धिमानी नहीं है।
मृत देह और संदिग्ध वस्तुओं से सावधानी
- किसी संदिग्ध वस्तु को छूने से पहले परीक्षण कराएं
- अपने आसपास के लोगों पर अंधा विश्वास न करें
- हर नए व्यक्ति की नीयत समझकर ही निकटता दें
शत्रु की योजना समझने की बुद्धि
नीतिसार यह नहीं कहता कि हर किसी पर शक करो। यह कहता है- “स्थिति देखकर अपना विवेक चालू रखो।”
सावधानी के चार संकेत:
- वस्तु असामान्य हो
- स्थान संदिग्ध हो
- व्यक्ति संदिग्ध हो
- परिस्थिति अचानक बनी हो
इन चारों में से कोई भी संकेत मिले तो सतर्कता जरूरी है।
आधुनिक संदर्भ
- गलत जानकारी
- साइबर जाल
- धोखाधड़ी
- फेक डॉक्यूमेंट
- सोशल इंजीनियरिंग
- रिश्वत के नाम पर फँसाना
नेतृत्व आज भी इसी नीति के सहारे सुरक्षित रह सकता है- “जो संदिग्ध हो, उसे पहले जांचो।”
सीख क्या मिलती है
- सुरक्षा में लापरवाही सबसे बड़ी कमजोरी है।
- हर वस्तु, व्यक्ति और परिस्थिति को शांत मन से परखें।
- खतरा अक्सर सामान्य चीजों में छिपा होता है।
- विवेक ही नेतृत्व की सबसे बड़ी ढाल है।
निष्कर्ष
कमन्दकीय नीतिसार का सार यही है कि नेतृत्व की सबसे बड़ी सुरक्षा बाहरी हथियारों में नहीं, बल्कि छिपी चालों और अनदेखे खतरे पहचानने की क्षमता में होती है। समझदार नेता हर सूचना, हर वस्तु और हर परिस्थिति को परखकर ही स्वीकार करता है। विवेक, परीक्षण और सतर्कता मिलकर ही राज्य और नेतृत्व दोनों को सुरक्षित रखते हैं।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: क्या यह श्लोक डर पैदा करने के लिए है?
उत्तर: नहीं। यह सतर्कता और विवेक की शिक्षा देता है।
प्रश्न 2: क्या आधुनिक लोग भी इसे लागू कर सकते हैं?
उत्तर: हाँ। साइबर सुरक्षा, रिश्वत, फर्जी दस्तावेज- सभी जगह विवेक आवश्यक है।
प्रश्न 3: क्या यह शत्रु-दर्शन सिखाता है?
उत्तर: यह शत्रु को समझने की बुद्धि देता है, शत्रुता को बढ़ावा नहीं।
पाठकों के लिए सुझाव
- किसी भी नई चीज से पहले मन में एक बार सवाल जरूर उठाएँ- “यह क्यों?”
- भावुक होकर निर्णय न लें।
- नेतृत्व हो या निजी जीवन, विवेक को प्राथमिकता दें।
- खुद को सुरक्षित रखना भी जिम्मेदारी का एक हिस्सा है।