भारतीय दर्शन का इतिहास और परिचय

भारतीय दर्शन का इतिहास और उसका परिचय

भारतीय दर्शन का इतिहास और उसका परिचय

भारतीय दर्शन की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है, जो वेदों और उपनिषदों से शुरू होकर अनेक विचारधाराओं में विकसित हुई। इस परंपरा के केंद्र में हैं — षड्दर्शन। ये हैं: न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्व मीमांसा और वेदांत।

ये दर्शन न केवल तात्त्विक और दार्शनिक प्रश्नों के उत्तर देते हैं, बल्कि वे जीवन के नैतिक और व्यवहारिक पहलुओं का भी मार्गदर्शन करते हैं। आज के युग में भी इन विचारों की प्रासंगिकता बनी हुई है, जहाँ व्यक्ति आध्यात्मिक दिशा की तलाश करता है।

भारतीय दर्शन का इतिहास और परिचय

प्रस्तावना

भारत का दर्शन एक जीवंत, गूढ़ और कालातीत परंपरा है, जिसने न केवल भारतीय समाज को दिशा दी, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को भी आत्मज्ञान की ओर अग्रसर किया। भारतीय दर्शन केवल शुष्क तर्क का विषय नहीं है; यह जीवन की पूर्ण समझ, अस्तित्व के रहस्य और मुक्ति की राह को दर्शाने वाला महान मार्गदर्शक है। यह शरीर, आत्मा, जगत, और ब्रह्म के रहस्यों को समझने का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रयास है।

 जो स्वयं को जान लेता है, वह ब्रह्मांड को जान लेता है।”- उपनिषद

मुख्य बिंदु 

  • भारतीय दर्शन की उत्पत्ति और पृष्ठभूमि
  • प्रमुख दर्शनों का परिचय: षड्दर्शन से लोकायत तक
  • वैदिक और अवैदिक दर्शन की विशेषताएँ
  • आधुनिक युग में भारतीय दर्शन की प्रासंगिकता
  • अध्ययन को रोचक और सरस बनाने के लिए दृष्टांत, उदाहरण और सूक्तियाँ

भारतीय दर्शन की उत्पत्ति और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

वैदिक युग: दर्शन का बीजारोपण
भारतीय दर्शन की नींव ऋग्वेद, उपनिषद, और ब्राह्मण ग्रंथों में दिखाई देती है। ऋग्वेद में विश्व की उत्पत्ति, आत्मा, और ब्रह्म के स्वरूप पर गहन विचार मिलते हैं।

उदाहरण: नासदीय सूक्त (ऋग्वेद 10.129) में यह प्रश्न उठाया गया—"क्या सृष्टिकर्ता जानता भी है कि सृष्टि कैसे बनी?"

उपनिषद: आत्मा और ब्रह्म का अद्वैत
उपनिषदों में आत्मा (आत्मन्) और ब्रह्म के अद्वैत सिद्धांत को विस्तार से समझाया गया। यह वह समय था जब दर्शन ने धार्मिक कर्मकांडों से ऊपर उठकर आत्म-चिंतन को प्राथमिकता दी।

मुख्य विचार:
  • आत्मा अमर और नित्य है
  • ब्रह्म और आत्मा एक ही हैं (अहं ब्रह्मास्मि)
  •  मोक्ष ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है
षड्दर्शन – भारतीय दर्शन की आधारशिला

वैदिक दर्शन की छह शाखाएँ (षड्दर्शन)

षड्दर्शन

सांख्य दर्शन
इस दर्शन की स्थापना कपिल मुनि ने की थी। यह दर्शन प्रकृति (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) को दो स्वतंत्र तत्व मानता है।

मुख्य तत्व:
  • सृष्टि 24 तत्त्वों से बनी है
  • दुःख की जड़ अज्ञान है
  • मुक्ति आत्मा की स्वतंत्रता में है
योग दर्शन
पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र इसका आधार है। यह सांख्य दर्शन के सैद्धांतिक आधार को व्यावहारिक रूप में लागू करता है।

आठ अंगों वाला मार्ग (अष्टांग योग):
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि

न्याय दर्शन
गौतम मुनि द्वारा रचित यह दर्शन तर्क और प्रमाण पर आधारित है। इसका उद्देश्य है—ज्ञान के माध्यम से सत्य की प्राप्ति

प्रमाण के चार प्रकार: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द

वैशेषिक दर्शन
कणाद ऋषि द्वारा स्थापित, यह पदार्थों की विश्लेषणात्मक जानकारी देता है। यह दर्शन अणु सिद्धांत का भी समर्थन करता है।

विचारणीय पदार्थ: द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय

मीमांसा दर्शन
जैमिनी द्वारा प्रतिपादित, यह दर्शन वैदिक कर्मकांड की व्याख्या करता है। यह धर्म और कर्तव्य पर बल देता है।

प्रमुख ध्येय:
  • यज्ञों का महत्व
  • वेद अपौरुषेय हैं
  • धर्म का ज्ञान वेदों से होता है
वेदान्त दर्शन
बादरायण द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र इसका आधार है। यह उपनिषदों की विचारधारा को समाहित करता है।

अद्वैत वेदान्त (शंकराचार्य):
  • ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है
  • जगत मिथ्या है
  • जीव ब्रह्म का अंश नहीं, स्वयं ब्रह्म है

अवैदिक दर्शन – बौद्ध, जैन, और लोकायत

बौद्ध दर्शन
गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित इस दर्शन ने आत्मा और ईश्वर के विचार को नकारा।

चार आर्य सत्य:

  • दुःख है
  • दुःख का कारण है
  • दुःख का अंत संभव है
  • अष्टांगिक मार्ग से मुक्ति संभव है

प्रत्युत्पन्नमतित्व और क्षणिकवाद जैसे सिद्धांत बौद्ध दर्शन की विशेषता हैं।

जैन दर्शन
महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित यह दर्शन आत्मा की शुद्धता और कर्म के बंधन की समाप्ति पर आधारित है।

त्रिरत्न:
  • सम्यक् ज्ञान
  • सम्यक् दर्शन
  • सम्यक् चरित्र
चार्वाक या लोकायत दर्शन
यह भौतिकवादी दर्शन है। यह केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है। आत्मा, पुनर्जन्म, ईश्वर—इन सबको नकारता है।

लोकायत का आदर्श वाक्य"जब तक जीओ, सुख से जीओ; ऋण लेकर घी पियो।"

भारतीय दर्शन की आधुनिक प्रासंगिकता

समकालीन विचारकों की दृष्टि

समकालीन विचारकों की दृष्टि
  • स्वामी विवेकानन्द: अद्वैत वेदान्त को विश्व स्तर पर प्रस्तुत किया।
  • महात्मा गांधी: जैन और गीता दर्शन से प्रेरित अहिंसा के सिद्धांत को अपनाया।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: दर्शन को आधुनिक शिक्षा में केंद्रीय स्थान दिया।

जीवन के हर पहलू में दर्शन

  • मानसिक शांति के लिए योग
  • समाज के लिए करुणा आधारित बौद्ध दृष्टिकोण
  • राजनीति में धर्मनिरपेक्ष न्यायिक दृष्टिकोण
  • व्यक्तिगत मुक्ति के लिए अद्वैत वेदान्त

निष्कर्ष 

भारतीय दर्शन केवल शास्त्रों तक सीमित नहीं है। यह एक जीवंत अनुभव है जो व्यक्ति को स्वयं से परिचित कराता है। यह दर्शन ज्ञान के माध्यम से मुक्ति का मार्ग दिखाता है—"सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म"

दर्शन केवल विचार नहीं, जीवन की दिशा है।”

FAQs

Q :  भारतीय दर्शन की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर: इसकी विशेषता जीवन को समग्र रूप से देखना है—आत्मिक, भौतिक, नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से।Q:     क्या दर्शन केवल ब्राह्मणों का विषय था?
उत्तर: नहीं, बुद्ध, महावीर, कबीर जैसे अनेक जनसाधारण के संतों ने दर्शन को सबके लिए सुलभ बनाया।
Q:    आधुनिक जीवन में दर्शन क्यों जरूरी है?
उत्तर: तनाव, असंतुलन और दिशाहीनता के युग में दर्शन आत्मनिरीक्षण और संतुलन का साधन है।

भारतीय दर्शन कोई बीता हुआ अध्याय नहीं, यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सहस्त्रों वर्ष पूर्व था। इसकी गहराई, विविधता और मानवीय दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि मुक्ति केवल मोक्ष नहीं, बल्कि सही दृष्टिकोण अपनाना है।
"दर्शन को केवल पढ़ें नहीं—जीएं, समझें और अपनाएं।" 

और नया पुराने