वाणी पर संयम का महत्व: कामन्दकी नीतिसार से शिक्षा
प्राचीन भारतीय नीति ग्रंथों में कामन्दकी नीतिसार का विशेष स्थान है। इसमें कहा गया है कि कठिन परिस्थितियों में भी मधुर वाणी का प्रयोग करना बुद्धिमानी है। वाणी केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संबंधों को संजोने का साधन भी है।
दुष्ट व्यक्ति की कटु वाणी, चाहे सत्य ही क्यों न हो, संबंधों में विष घोल सकती है। वहीं मधुर शब्द कठिन से कठिन परिस्थिति को सहज बना सकते हैं। इसीलिए कहा गया है — *"वाणी रक्षति रक्षिताः"*, अर्थात वाणी की रक्षा करने से वही वाणी हमारी रक्षा करती है।
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symbol of restraint of speech-jpg "वाणी पर संयम – श्रेष्ठ नेतृत्व और नीति का मूल आधार, कामन्दकी नीतिसार की दृष्टि में।" |
वाणी पर संयम का महत्व। कामन्दकी नीतिसार
कठिन परिस्थितियों में भी कठोर वाणी से परहेज क्यों?
कामन्दकी नीतिसार भारतीय नीति ग्रंथों में से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें जीवन, समाज और राजनीति से संबंधित गहरी नीतियाँ दी गई है। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चाहे कोई व्यक्ति कितना भी दुखी या पीड़ित हो, उसे कभी भी ऐसे कटु शब्द नहीं बोलने चाहिए जो दूसरों के हृदय को गहरी चोट पहुँचा दे।
"शब्द बाणों से भी अधिक घातक हो सकते हैं, क्योंकि बाण शरीर को घायल करता है, लेकिन शब्द मन को पीड़ा पहुँचाते हैं, जो वर्षों तक बनी रह सकती है"
कामन्दकी नीतिसार की इस नीति का गूढ़ अर्थ
कठोर शब्द दीर्घकालिक घाव छोड़ जाते हैं
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Harsh words leave lasting scars |
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शारीरिक चोटें समय के साथ ठीक हो जाती हैं, लेकिन शब्दों की चोटें लंबे समय तक मन में बनी रहती है।जब कोई व्यक्ति क्रोध या दुख में कठोर शब्द बोलता है, तो वह अस्थायी रूप से संतुष्टि तो पा सकता है, लेकिन इससे उसके संबंध खराब हो जाते है।
उदाहरण: महाभारत में द्रौपदी ने दुःशासन और दुर्योधन का अपमान किया, जिसके कारण उनका अहंकार और प्रतिशोध की भावना और बड़ी जिसके कारण महायुद्ध का युद्ध हुआ।
विपत्ति में संयम रखना ही बुद्धिमत्ता है
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कठिन परिस्थितियों में भी जो व्यक्ति अपनी वाणी पर नियंत्रण रखता है, वही सच्चा बुद्धिमान होता है।
कठोर शब्दों से समस्याएँ और बढ़ सकती हैं, जबकि संयम से समाधान निकल सकता है।
"क्रोध के वशीभूत होकर बोले गए शब्द बाद में पछतावे का कारण बनते हैं, इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति वाणी पर संयम रखता है।"
कटु वचन संबंधों को नष्ट कर सकते हैं
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चाहे कोई व्यक्ति कितना भी कष्ट में हो, उसे अपने प्रियजनों, मित्रों और सहयोगियों से कठोरता से बात नहीं करनी चाहिए।
एक बार कहे गए कटु शब्द, संबंधों में दूरी और कड़वाहट ला सकते सकते हैं।
उदाहरण: रामायण में कैकेयी ने केवल कुछ कठोर शब्दों के कारण अपने पुत्र भरत और राजा दशरथ का स्नेह खो दिया था ।
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Harsh words of Kaikeyi caused distance between Dasharath and Bharat |
कठोर वाणी से बचने के व्यावहारिक उपाय
क्रोध और निराशा में मौन धारण करें
जब मन में क्रोध हो या निराशा हो, तो तुरंत कुछ बोलने की बजाय, पहले शांत होने की कोशिश करें।
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मौन रहने से स्थिति को समझने का अवसर मिलता है और सही शब्दों का चयन किया जा सकता है।
"जब मन अशांत हो, तब बोले गए शब्द तीर की तरह लगते हैं, इसलिए शांत होने के बाद ही बोलना चाहिए।"
कठिन समय में सकारात्मक संवाद अपनाएँ
- यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक पीड़ा में है, तो उसे नकारात्मक शब्दों की बजाय शांत और सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
- संवाद की शैली को मधुर और प्रभावशाली बनाने से समस्या का समाधान निकल सकता है।
उदाहरण: भगवान बुद्ध ने अत्यधिक अपमान सहने के बावजूद, अपने शब्दों में संयम रखा और शांति का संदेश दिया।
दूसरे के दृष्टिकोण को समझे
- जब भी कोई व्यक्ति हमें ठेस पहुँचाए, तो तुरंत प्रतिक्रिया देने की बजाय, उसकी भावनाओं और परिस्थितियों को समझने की कोशिश करें।
- दूसरों की स्थिति को समझने से कठोर शब्दों के प्रयोग से बचा जा सकता है।
"सबसे बुद्धिमान वही है, जो क्रोध में भी मधुर वाणी से अपनी बात कह सके।"
संयमित वाणी से ही सच्चा सम्मान मिलत है
कामन्दकी नीतिसार हमें सिखाता है कि –
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कठिन परिस्थितियों में भी वाणी पर संयम रखना आवश्यक है।
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कटु शब्दों से संबंधों में दरार आ सकती है और समाज में व्यक्ति की छवि खराब हो सकती है।
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संयमित और मधुर भाषा अपनाने से सम्मान, प्रेम और सफलता प्राप्त होती है।
"शब्दों की शक्ति से ही व्यक्ति महान बनता है या अपना सर्वनाश करता है।"
कामन्दकी नीतिसार हमें यह सिखाता है कि वाणी का संयम न केवल व्यक्तिगत शांति का आधार है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और संबंधों की स्थिरता के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। कठिन परिस्थितियों में भी यदि हम अपने शब्दों पर नियंत्रण रखते हैं, तो न केवल हम अपने आत्म-संयम को सिद्ध करते हैं, बल्कि दूसरों के मन में भी सम्मान अर्जित करते हैं।
वाणी की शक्ति से ही व्यक्ति महान बनता है या अपना सर्वनाश करता है। इसलिए, हमें सदैव सोच-समझकर, मधुर और संयमित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास में सहायक होगा, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करेगा।
आइए, हम सभी इस नीति को अपने जीवन में अपनाएँ और वाणी के संयम से एक शांतिपूर्ण और समरस समाज की स्थापना में योगदान दें।
FAQs
"जो अपनी वाणी को नियंत्रित कर सकता है, वही सच्चा ज्ञानी और विजयी होता है।"
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