वैशेषिक दर्शन में पदार्थ का सिद्धांत: महर्षि कणाद
महर्षि कणाद ने वैशेषिक दर्शन के माध्यम से पदार्थ की संरचना को छह प्रमुख तत्वों में विभाजित किया है। ये तत्व हैं: द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय। उनका यह सिद्धांत भौतिक और मानसिक जगत की समझ को गहरे स्तर तक विस्तृत करता है।
महर्षि कणाद के अनुसार, द्रव्य वह मूल तत्व है जिससे सभी पदार्थ निर्मित होते हैं। गुण और कर्म द्रव्य के साथ जुड़कर उसकी पहचान और कार्य प्रणाली को निर्धारित करते हैं। सामान्य और विशेष, दोनों ही पदार्थों के गुण और उनके बीच के अंतर को स्पष्ट करते हैं। अंत में, समवाय पदार्थों के आपसी संबंधों को परिभाषित करता है।
“तत्त्वज्ञान से ही मोक्ष संभव है।” – महर्षि कणाद
महर्षि कणाद द्वारा प्रतिपादित वैशेषिक दर्शन में पदार्थ का सिद्धांत यह कहता है कि सृष्टि के समस्त तत्वों की वास्तविकता केवल पदार्थों (द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय) के आधार पर समझी जा सकती है। कणाद के अनुसार, सृष्टि परमाणुओं (अणुओं) से बनी है और ये परमाणु कभी नष्ट नहीं होते, केवल उनका संयोग और विच्छेदन होता है। इस दर्शन में तत्त्वज्ञान को जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य माना गया है, क्योंकि इसे प्राप्त करने से मुक्ति (मोक्ष) मिलती है। जब व्यक्ति इन तत्वों के वास्तविक स्वरूप को समझता है, तो वह मिथ्या ज्ञान से मुक्त होकर आत्मा के शुद्ध रूप को पहचानता है। इस प्रकार, तत्त्वज्ञान से ही आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
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Maharshi Kanada Matter Theory, with Ancient Indian Texts-jpgs |
प्रस्तावना
भारतीय दर्शन की विविध धाराओं में वैशेषिक दर्शन एक अनूठा स्थान रखता है। यह दर्शन न केवल तात्त्विक गहराइयों में प्रवेश करता है, बल्कि विज्ञान और तर्क के धरातल पर भी विचार करता है। इसका मुख्य विषय है – पदार्थ और उसकी प्रकृति की विश्लेषणात्मक व्याख्या।
तो आइए, गहराई से समझते हैं – वैशेषिक दर्शन में पदार्थ के सिद्धांत को।
पृष्ठभूमि – वैशेषिक दर्शन की उत्पत्ति और स्वरूप
ऋषि कणाद – दर्शन के प्रवर्तक
महर्षि कणाद (संस्कृत: कण+आद — "जो कणों में रहस्य खोजे") का वास्तविक नाम कौंडिन्य था। उन्होंने प्रथम बार यह सिद्ध किया कि संपूर्ण जगत अणुओं (Atoms) से निर्मित है, जो अविभाज्य और नित्य होते हैं।
उन्होंने वैशेषिक सूत्रों की रचना की, जो लगभग 370 सूत्रों में दर्शन, तर्क और पदार्थ विज्ञान का मूल आधार प्रस्तुत करते हैं।
सूत्र का आरंभ होता है: "अथातो धर्मजिज्ञासा", अर्थात अब हम धर्म (कर्तव्य, तत्वज्ञान) की जिज्ञासा करते हैं
न्याय दर्शन से संबंध
न्याय और वैशेषिक दर्शन भारतीय दर्शन के दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं, जो एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। न्याय दर्शन का मुख्य ध्यान ज्ञान प्राप्ति के साधनों (प्रमाणों) पर है, जिसमें चार प्रमुख प्रमाण माने गए हैं—प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमाण और शब्द। ये प्रमाण सत्य तक पहुँचने के मार्गदर्शक होते हैं और व्यक्ति को सही तर्क और निर्णय लेने में मदद करते हैं।
वहीं, वैशेषिक दर्शन का ध्यान संसार की वस्तुओं और उनके तत्वों पर है। यह दर्शन पदार्थों की श्रेणियों, जैसे कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार, और आत्मा, का विश्लेषण करता है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार, इन तत्वों की विशिष्टता और गुण उनके अस्तित्व का आधार हैं।
दोनों दर्शन मिलकर ज्ञान और वास्तविकता के समग्र चित्र को समझने में मदद करते हैं—न्याय दर्शन तर्क और प्रमाण के माध्यम से सत्य का विश्लेषण करता है, जबकि वैशेषिक दर्शन उन तत्वों की संरचना को स्पष्ट करता है, जिनसे यह संसार बना है।
वैशेषिक दर्शन के मूल तत्व – षट् पदार्थ सिद्धांत
वैशेषिक दर्शन के अनुसार, संसार की सभी वस्तुएं छह प्रमुख तत्वों (षट् पदार्थ) से बनी होती हैं। ये तत्व हैं: पदार्थ, धर्म, आत्मा, मन, बुद्धि और अहंकार। पदार्थ वह मूलभूत तत्व है, जो भौतिक रूप में अस्तित्व में है और विभाज्य नहीं है। धर्म वस्तुओं के गुणों या विशेषताओं को व्यक्त करता है, जैसे रंग, आकार, आदि। आत्मा एक शाश्वत और अविनाशी तत्व है, जो सभी जीवों में विद्यमान होता है। मन मानसिक प्रक्रिया का केंद्र है, जो विचारों और भावनाओं को नियंत्रित करता है। बुद्धि तर्क, निर्णय और ज्ञान की क्षमता को संदर्भित करती है, जबकि अहंकार आत्म-बोध और व्यक्ति की पहचान का प्रतीक है। ये सभी तत्व मिलकर न केवल जीवन की संरचना और कार्यप्रणाली को निर्धारित करते हैं, बल्कि ब्रह्मांड के समग्र सृजन और परिवर्तन के सिद्धांत को भी समझाते हैं।
वैशेषिक में छः पदार्थ
वैशेषिक दर्शन में संसार की रचनात्मकता और विविधता को समझने के लिए छह पदार्थों की व्याख्या इस प्रकार की जाती है:
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द्रव्य: यह वह मूल आधार है, जिसमें गुण और कर्म स्थित होते हैं। द्रव्य भौतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें बदलाव या गुण प्रकट होते हैं।
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गुण: द्रव्य के लक्षण होते हैं, जैसे रंग, स्वाद, रूप, आदि, जो द्रव्य को पहचानने में मदद करते हैं।
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कर्म: यह द्रव्य में गति या परिवर्तन की क्रिया को व्यक्त करता है। कर्म द्रव्य के भीतर होने वाली सक्रियता या हलचल को दर्शाता है।
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सामान्य: यह समानता को दर्शाने वाला तत्व है, जो विभिन्न द्रव्यों या गुणों में सामान्य या समानता का प्रतीक होता है। उदाहरण के तौर पर, सभी मनुष्य में 'मानवता' सामान्य गुण है।
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विशेष: यह वह तत्व है जो द्रव्य या गुण को उसकी विशेष पहचान प्रदान करता है, जिससे वह अन्य द्रव्यों से भिन्न होता है। जैसे, एक व्यक्ति की विशेषता उसकी व्यक्तिगत पहचान होती है।
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समवाय: यह अविभाज्य संबंध को दर्शाता है, यानी किसी गुण या कर्म का द्रव्य के साथ अनिवार्य और अभिन्न संबंध। यह गुण और कर्म द्रव्य से अलग नहीं हो सकते, वे एक-दूसरे के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़े रहते हैं।
द्रव्य – पदार्थ का भौतिक आधार
वैशेषिक दर्शन में 'द्रव्य' को पदार्थ का भौतिक आधार माना गया है, जिसमें गुण और कर्म स्थित होते हैं। यह वह तत्व है, जो स्थायी और अविनाशी होता है, और इसके भीतर गुण (जैसे रंग, स्वाद, रूप) और कर्म (जैसे गति, परिवर्तन) प्रकट होते हैं। द्रव्य के बिना गुण और कर्म का अस्तित्व संभव नहीं है, क्योंकि ये केवल द्रव्य में ही प्रकट होते हैं।
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9 Dravyas of Vaisheshika Philosophy, Simple Infograph-jpgs |
नौ प्रकार के द्रव्य- वैशेषिक दर्शन में कुल नौ प्रकार के द्रव्य माने गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:
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पृथिवी (भूमि) – गंध गुण वाला, स्थायित्व और रूप का आधार।
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आप (जल) – रस गुण वाला, पोषण और तरलता का आधार।
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तेज (अग्नि) – रूप गुण वाला, प्रकाश और ताप का आधार।
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वायु – स्पर्श गुण वाला, गति और संचार का आधार।
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आकाश – शब्द गुण वाला, ध्वनि और रिक्त स्थान का आधार।
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काल – नित्य गुण वाला, समय का प्रवाह।
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दिक् (दिशा) – स्थिर गुण वाला, स्थान निर्धारण का आधार।
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मन – सूक्ष्म गुण वाला, चेतना का माध्यम।
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आत्मा – चेतन गुण वाला, अनुभव, स्मृति और इच्छा का आधार।
इन नौ द्रव्यों का संयोजन ब्रह्मांड की रचनात्मक प्रक्रिया, कार्य और अस्तित्व को संचालित करता है। प्रत्येक द्रव्य के विशिष्ट गुण और कार्य होते हैं, जो उसकी पहचान और भूमिका को स्पष्ट करते हैं। इस प्रकार, द्रव्य वैशेषिक दर्शन में पदार्थ का भौतिक आधार है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की संरचना और कार्यप्रणाली को निर्धारित करता है।
“प्रत्येक द्रव्य, गुण और कर्म का आधार होता है।”
गुण – द्रव्य की पहचान
वैशेषिक दर्शन में गुणों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा गया है:
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इन्द्रियग्राह्य गुण: जो इन्द्रियों से अनुभव किए जा सकते हैं, जैसे रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, और शब्द।
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द्वेन्द्रियग्राह्य गुण: जो दो इन्द्रियों से अनुभव किए जा सकते हैं, जैसे संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, द्रवत्व, स्नेह, वेग, और संस्कार।
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अतीन्द्रिय गुण: जो इन्द्रियों से परे होते हैं, जैसे बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना, और संस्कार।
वैशेषिक दर्शन में द्रव्य (पदार्थ) के गुण
वैशेषिक दर्शन में द्रव्य (पदार्थ) के 24 गुणों का उल्लेख मिलता है। ये गुण द्रव्य में स्थित होते हैं और स्वतंत्र रूप से क्रिया नहीं करते, बल्कि द्रव्य के स्वभाव और उसके गुणों को व्यक्त करते हैं। इन गुणों को समझने से द्रव्य और उनके गुणों की प्रकृति को समझने में सहायता मिलती है।
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List of 24 Gunas, Shown in Visual Table-jpgs |
वैशेषिक दर्शन के गुण:
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गंध : गंध का अनुभव करने की क्षमता।
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रस : स्वाद का अनुभव करने की क्षमता।
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रूप : रंग और रूप का अनुभव करने की क्षमता।
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स्पर्श : स्पर्श का अनुभव करने की क्षमता।
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संगति : द्रव्य का एकत्रित होना।
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विभाग : द्रव्य का विभाजन होना।
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सांख्य : संख्या या गणना की क्षमता।
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परिमाण : द्रव्य का माप या आकार।
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पृथक्त्व : विभिन्नता या पृथकता का अनुभव।
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संयोग : द्रव्य का मिलन या संयोग।
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वियोग : द्रव्य का पृथक्करण या वियोग।
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परत्व : उच्चता या श्रेष्ठता का अनुभव।
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अपरत्व : न्यूनता या हीनता का अनुभव।
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द्रवत्व : द्रव्य की तरलता।
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गुरुत्व : द्रव्य का गुरुत्वाकर्षण।
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संस्कार : द्रव्य की स्थायी प्रवृत्तियाँ।
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स्मृति : पूर्व अनुभवों की याददाश्त।
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आश्रय : द्रव्य का गुणों का धारण करना।
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अभाव : किसी गुण का अभाव।
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वृद्धि : द्रव्य की वृद्धि या बढ़ोतरी।
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क्षय : द्रव्य की हानि या क्षति।
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सत्त्व : द्रव्य की अस्तित्वशीलता।
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वस्तु : द्रव्य का वास्तविकता।
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आत्मनिष्ठा : द्रव्य की स्व-प्रवृत्ति।
इन गुणों का अध्ययन करके हम द्रव्य की प्रकृति और उनके आपसी संबंधों को समझ सकते हैं, जो वैशेषिक दर्शन का मूल उद्देश्य है।
कर्म – द्रव्य में होने वाली गतिविधियाँ
वैशेषिक दर्शन में 'कर्म' (क्रिया) को द्रव्य के भीतर होने वाली गतिव्यवहार के रूप में समझा जाता है। यह द्रव्य की एक अंतर्निहित विशेषता है, जो उसके गुणों के माध्यम से प्रकट होती है। कर्म द्रव्य के स्वभाव और उसके गुणों के अनुसार विभिन्न प्रकार की गतियाँ उत्पन्न करता है।
कर्म के प्रकार- वैशेषिक दर्शन में कर्म के पाँच प्रमुख प्रकार माने गए हैं:
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उत्क्षेपण (Utksepana): द्रव्य का ऊपर की ओर उठना या आरोहण।
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अवक्षेपण (Avaksepana): द्रव्य का नीचे की ओर गिरना या अवरोहण।
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आकुञ्चन (Akunchana): द्रव्य का सिकुड़ना या संकुचन।
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प्रसारण (Prasaran): द्रव्य का फैलना या विस्तार।
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गमन (Gaman): द्रव्य का स्थान परिवर्तन या गमन।
Dynamics of Karmas, Simple Loop Design-jpgs
इन कर्मों के माध्यम से द्रव्य अपने गुणों के अनुसार विभिन्न गतिव्यवहार प्रदर्शित करता है, जो उसकी प्रकृति और स्वभाव को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, जल का ऊपर उठना (उत्क्षेपण), नीचे गिरना (अवक्षेपण), सिकुड़ना (आकुञ्चन), फैलना (प्रसारण) या स्थान बदलना (गमन) उसके अंतर्निहित गुणों के कारण संभव होता है।
इस प्रकार, वैशेषिक दर्शन में कर्म द्रव्य के गुणों के माध्यम से प्रकट होने वाली गतिव्यवहार को दर्शाता है, जो द्रव्य की वास्तविकता और उसके आपसी संबंधों को समझने में सहायक होता है।
“कर्म के बिना कोई द्रव्य गतिशील नहीं होता।”
सामान्य और विशेष – ब्रह्मांड की संरचना
सामान्य और विशेष की परिभाषा
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सामान्य यह किसी गुण, कर्म या पदार्थ की सामान्यता को दर्शाता है, जो अनेक विशेषताओं में समान होता है। उदाहरण के लिए, "पानी" शब्द जल के सभी रूपों को सामान्य रूप से व्यक्त करता है।
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विशेष यह किसी विशिष्ट गुण, कर्म या पदार्थ की विशेषता को दर्शाता है, जो उसे अन्य से अलग करता है। उदाहरण के लिए, "गंगा नदी का जल" जल के विशिष्ट रूप को व्यक्त करता है।
ब्रह्मांड की संरचना में सामान्य और विशेष की भूमिका
वैशेषिक दर्शन के अनुसार, ब्रह्मांड की संरचना को समझने के लिए सामान्य और विशेष की अवधारणाएँ महत्वपूर्ण है। यहाँ सामान्य और विशेष के माध्यम से हम पदार्थों की भिन्नता और उनके आपसी संबंधों को समझ सकते है।
1. सामान्य का महत्व
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समानता की पहचान - सामान्य के माध्यम से हम विभिन्न पदार्थों में समान गुणों की पहचान कर सकते है।
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वर्गीकरण में सहायता - सामान्य की अवधारणा से हम पदार्थों का वर्गीकरण कर सकते हैं, जिससे उनके अध्ययन में सुविधा होती ह।
2. विशेष का महत्व
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भिन्नता की पहचान -विशेष के माध्यम से हम विभिन्न पदार्थों में भिन्नताओं की पहचान कर सकते हैं, जो उनके विशिष्ट गुणों को दर्शाती है।
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व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति - विशेष पदार्थ किसी विशिष्ट स्थान, समय या परिस्थिति में अपने गुणों के साथ प्रकट होते हैं, जो उनके व्यक्तित्व को दर्शाता है।
सामान्य और विशेष के आपसी संबंध
सामान्य और विशेष के बीच एक गहरा संबंध हैं सामान्य के माध्यम से हम पदार्थों की समानताओं को समझते हैं, जबकि विशेष के माध्यम से हम उनकी भिन्नताओं को पहचानते हैं यह दोनों मिलकर ब्रह्मांड की संरचना को पूर्ण रूप से समझने में सहायता करते हं।
समवाय – अविभाज्य संबंध
वैशेषिक दर्शन में 'समवाय' एक विशेष प्रकार का संबंध है, जिसे 'अविभाज्य संबंध' कहा जाता है। यह संबंध दो वस्तुओं के बीच ऐसा होता है कि वे एक-दूसरे से अविभाज्य रूप से जुड़े होते हैं और एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव नहीं होता।
'समवाय' वह नित्य (शाश्वत) संबंध है, जो दो वस्तुओं के बीच अविभाज्य रूप से होता है, जहाँ एक वस्तु दूसरे में इस प्रकार स्थित होती है कि उनका पृथक् अस्तित्व संभव नहीं होता। यह संबंध नित्य होता है, अर्थात् इसका न तो आरंभ होता है और न ही अंत। यह संबंध वस्तुओं के बीच आंतरिक रूप से विद्यमान होता है और उन्हें एक अविच्छेद्य इकाई के रूप में जोड़ता है।
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वैशेषिक दर्शन में समवाय संबंध के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
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द्रव्य और गुण: जैसे रंग, गंध, स्वाद आदि गुण किसी द्रव्य में समवाय संबंध से स्थित होते हैं। उदाहरणस्वरूप, एक पुष्प का रंग और उसकी गंध उस पुष्प में समवाय संबंध से स्थित हैं।
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द्रव्य और क्रिया: किसी द्रव्य में होने वाली क्रिया, जैसे गति या परिवर्तन, उस द्रव्य से समवाय संबंध से जुड़ी होती है।
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अवयव और अवयवी: जैसे तंतु (धागे) और पट (कपड़ा) के बीच संबंध। तंतु कपड़े के अवयव हैं और वे कपड़े में समवाय संबंध से स्थित हैं।
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जाति और व्यक्ति: जैसे 'घटत्व' (घट की जाति) और 'घट' (घट का व्यक्ति) के बीच संबंध। जाति अपने व्यक्तियों में समवाय संबंध से स्थित होती है।
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विशेष और नित्य द्रव्य: नित्य द्रव्यों में विशेष (पृथकता का तत्व) समवाय संबंध से स्थित होता है, जिससे प्रत्येक नित्य द्रव्य अन्य से भिन्न होता है।
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वैशेषिक दर्शन के प्रमाण
वैशेषिक दर्शन, जो महर्षि कणाद द्वारा प्रणीत है, भारतीय दर्शनों में प्रमेय-प्रधान माना जाता है। इसमें ज्ञान प्राप्ति के लिए केवल दो प्रमाणों को स्वीकार किया गया है: प्रत्यक्ष और अनुमान।
प्रत्यक्ष प्रमाण
प्रत्यक्ष प्रमाण वह ज्ञान है जो इन्द्रियों के माध्यम से सीधे अनुभव किया जाता है। यह ज्ञान इन्द्रिय, मन, आत्मा और विषय के सन्निकर्ष से उत्पन्न होता है। प्रशस्तपाद के अनुसार, प्रत्यक्ष ज्ञान निर्दोष, अव्यपदेश्य (शब्द से अप्रभावित) और स्पष्ट होता है प्रत्यक्ष के दो भेद माने गए हैं।
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निर्विकल्पक प्रत्यक्ष- जिसमें विषय की पहचान नहीं होती, केवल उसका अनुभव होता है।
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सविकल्पक प्रत्यक्ष- जिसमें विषय की स्पष्ट पहचान होती है, जैसे "यह गाय है"।
अनुमान प्रमाण
अनुमान प्रमाण वह ज्ञान है जो प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर तर्क द्वारा प्राप्त किया जाता है। जब किसी वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता, लेकिन उसके लक्षणों के आधार पर उसका ज्ञान होता है, तो उसे अनुमान कहते है। उदाहरण स्वरूप, धुएँ को देखकर अग्नि का अनुमान लगान।
वैशेषिक दर्शन में अन्य प्रमाणों जैसे उपमान (उपमा द्वारा ज्ञान) और शब्द (शास्त्रों या विश्वसनीय व्यक्तियों के कथन) को स्वतंत्र प्रमाण नहीं माना गया है; उन्हें अनुमान के अंतर्गत ही समाहित किया गया है।
वैशेषिक दर्शन, महर्षि कणाद द्वारा प्रणीत, भारतीय दार्शनिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह दर्शन भौतिक जगत की संरचना और तत्वों के विश्लेषण पर केंद्रित है, और इसके कई सिद्धांत आधुनिक विज्ञान से साम्य रखते हैं।
वैशेषिक दर्शन और आधुनिक विज्ञान: प्रमुख साम्य
1. परमाणुवाद और आधुनिक परमाणु सिद्धांत
महर्षि कणाद ने 'परमाणु' की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसे उन्होंने अविभाज्य, शाश्वत और अतीन्द्रिय तत्व माना यह विचार आधुनिक परमाणु सिद्धांत से मेल खाता है, जहाँ परमाणु को पदार्थ का मूलभूत कण माना जाता है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार, विभिन्न पदार्थों का निर्माण परमाणुओं के विभिन्न संयोजनों से होता है, जो आधुनिक रसायन विज्ञान के सिद्धांतों से साम्य रखता है।
2. गति के नियम और न्यूटन के सिद्धांत
कुछ विद्वानों का मानना है कि महर्षि कणाद ने गति और क्रिया-प्रतिक्रिया के सिद्धांतों का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया था, जो न्यूटन के गति के नियमों से मिलते-जुलते है। हालाँकि, यह विषय विद्वानों के बीच विवादास्पद है और इस पर और अधिक शोध की आवश्यकता है।
3. द्रव्य, गुण और कर्म का विश्लेषण
वैशेषिक दर्शन में पदार्थ (द्रव्य), उसके गुण (गुण) और क्रिया (कर्म) का विश्लेषण किया गया है। यह दृष्टिकोण आधुनिक भौतिकी में पदार्थों के गुणधर्मों और उनके व्यवहार के अध्ययन से मेल खाता है।
4. समवाय संबंध और क्वांटम एंटैंगलमेंट
वैशेषिक दर्शन में 'समवाय' को अविभाज्य संबंध माना गया है, जहाँ दो तत्व इस प्रकार जुड़े होते हैं कि उनका पृथक् अस्तित्व संभव नहीं होताहै। यह अवधारणा आधुनिक भौतिकी में 'क्वांटम एंटैंगलमेंट' की अवधारणा से साम्य रखती है, जहाँ दो कण इस प्रकार जुड़े होते हैं कि एक में परिवर्तन दूसरे को भी प्रभावित करता है, भले ही वे कितनी भी दूरी पर हों।
"गहराई से देखिए, तो हर कण में दर्शन है।""तत्वों को समझना, स्वयं को समझना है।"
निष्कर्ष
वैशेषिक दर्शन पदार्थ की व्याख्या के माध्यम से न केवल दर्शन को, बल्कि आधुनिक विज्ञान को भी एक प्राचीन आधार प्रदान करता है। यह दर्शन आत्मा, कर्म, पदार्थ और मोक्ष को तर्क के साथ जोड़ता है और स्पष्ट करता है कि तत्वज्ञान ही जीवन का मार्गदर्शक है।
FAQs
H3: प्रश्न 1: वैशेषिक दर्शन में कितने प्रकार के द्रव्य होते हैं?
उत्तर: नौ प्रकार – पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन।
H3: प्रश्न 2: समवाय का क्या अर्थ है?
उत्तर: ऐसा संबंध जो दो तत्वों को अविभाज्य रूप से जोड़ता है, जैसे – गुण और द्रव्य।
H3: प्रश्न 3: क्या वैशेषिक दर्शन वैज्ञानिक है?
उत्तर: हाँ, यह दर्शन परमाणुवाद, गति, गुणों और पदार्थों की वैज्ञानिक व्याख्या करता है।