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जब शिक्षा से नैतिकता गायब हो जाती है, तो ज्ञान अधूरा रह जाता है — यह चित्र उस संकट की झलक है। |
शिक्षा में नैतिकता का अभाव
भूमिका – ज्ञान नहीं, मूल्य चाहिए!
आज जब हम शिक्षा की बात करते हैं, तो उसकी गुणवत्ता को अंकों, डिग्रियों और रोजगार की संभावनाओं से मापा जाता है। लेकिन एक सवाल जो गूंजता है, वो यह है: क्या हमारी शिक्षा प्रणाली आज के छात्रों को नैतिक इंसान बना रही है? यदि उत्तर 'नहीं' है, तो हमें शिक्षा के उद्देश्य और उसके स्वरूप पर गंभीर पुनर्विचार करना चाहिए।
पृष्ठभूमि – नैतिकता और शिक्षा का ऐतिहासिक संबंध
भारतीय परंपरा में शिक्षा
आधुनिक शिक्षा प्रणाली की स्थिति
आज की शिक्षा प्रणाली में प्रतिस्पर्धा, प्रदर्शन और प्रतिष्ठा का बोलबाला है। नैतिक मूल्य – जैसे ईमानदारी, सहानुभूति, विनम्रता और समाज सेवा – पाठ्यक्रम में कहीं खो गए हैं।
शिक्षा में नैतिकता की कमी के प्रमुख कारण
1. पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा की उपेक्षा
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सिर्फ सिलेबस और स्कोर तक सीमित शिक्षा।
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नैतिकता, मूल्यों और संवेदनशीलता पर केंद्रित विषयों को “कम महत्वपूर्ण” समझा जाता है।
2. शिक्षकों की भूमिका में बदलाव
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शिक्षक अब ‘गुरु’ नहीं, केवल विषय विशेषज्ञ बनते जा रहे हैं।
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नैतिक नेतृत्व की भूमिका पीछे छूट रही है।
3. परीक्षा प्रणाली और दबाव
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अंकों की दौड़ में छात्र नकल, धोखाधड़ी जैसे अनैतिक तरीकों का सहारा लेने लगते हैं।
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परीक्षा में सफल होना नैतिक व्यक्ति बनने से बड़ा लक्ष्य बन गया है।
4. डिजिटल युग की चुनौतियाँ
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सोशल मीडिया और वर्चुअल लाइफ ने बच्चों को त्वरित लाभ और दिखावे की संस्कृति में ढाल दिया है।
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करुणा और सहनशीलता जैसे मूल्यों को क्षीण किया जा रहा है।
नैतिकता के अभाव के दुष्परिणाम
सामाजिक परिणाम
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भ्रष्टाचार, लैंगिक भेदभाव, हिंसा जैसी समस्याओं की जड़ में नैतिक शून्यता है।
व्यक्तिगत स्तर पर परिणाम
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छात्रों में तनाव, असहिष्णुता, आत्मकेंद्रितता बढ़ रही है।
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नैतिक भ्रम से आत्म-संतोष का अभाव होता है।
केस स्टडी
CBSE 12वीं की परीक्षा में नकल प्रकरण: छात्रों ने टॉप करने की लालसा में नैतिकता को तिलांजलि दी। इस पर चर्चा मीडिया में भी हुई।
समाधान – शिक्षा में नैतिकता की पुनर्स्थापना
1. नैतिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना
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हर स्तर पर “वैल्यू एजुकेशन” को शामिल किया जाए।
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कहानियों, चर्चाओं और केस स्टडी के ज़रिए नैतिक चिंतन को प्रोत्साहन।
2. शिक्षक प्रशिक्षण में नैतिकता का समावेश
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शिक्षकों को केवल ज्ञान ही नहीं, आदर्श और प्रेरणा का स्त्रोत भी बनाना होगा।
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टीचर कोचिंग में नैतिक नेतृत्व पर फोकस हो।
3. मूल्य-आधारित सह-पाठ्यक्रम गतिविधियाँ
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नाटक, जनसेवा, एनएसएस, स्काउट/गाइड जैसी गतिविधियों को बढ़ावा।
4. परिवार और समाज की भूमिका
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घर और समाज को भी नैतिकता का पाठ पढ़ाने में योगदान देना होगा।
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“बच्चे जो देखते हैं, वही सीखते हैं।”
निष्कर्ष – नैतिक शिक्षा की पुनर्परिभाषा आवश्यक
“जिस शिक्षा से चरित्र नहीं बनता, वो केवल सूचना है, शिक्षा नहीं।”