शासन नहीं सेवा, राजा का असली धर्म यही है

विषयसूची 

  1. परिचय – करुणा और शक्ति का टकराव या संतुलन?

  2. कामान्द्की नीतिसार का श्लोक – “आनृशंस्यं परो धर्मः...” का भावार्थ

  3. नीति, दया और शक्ति का समन्वय – राजा का धर्म: न्याय के साथ संवेदना

  4. अनृशंसता का अर्थ और आवश्यकता – नीति में करुणा का महत्व

  5. आधुनिक भारत में नीति की प्रासंगिकता – प्रधानमंत्री योजनाएँ, न्यायपालिका और कोविड राहत

  6. करुणामय दृष्टिकोण क्यों आवश्यक? – विश्वास, गहराई और सामाजिक एकता

  7. केस स्टडी – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम: शक्ति और दया का संतुलन

  8. निष्कर्ष – शासन का सार: न्याय + संवेदना

  9. FAQs


क्या शक्ति के साथ करुणा संभव है?

कल्पना कीजिए एक ऐसा शासक जो अपनी प्रजा के कष्ट को देखकर उसकी मदद के लिए आगे आता है, बिना भेदभाव, बिना क्रोध। वह न केवल न्याय करता है बल्कि उसके पीछे संवेदना भी छुपी होती है।

कामान्द्की नीतिसार का यह श्लोक —

“आनृशंस्यं परो धर्मः सर्वप्राणभृतां यतः।

तस्मात्राजाऽनृशंस्येन पालयेत्कृपणं जनम्॥”

सीधा संदेश देता है: “अनृशंसता”, अर्थात् क्रूरता का अभाव ही सबसे महान धर्म है। और यह नीति विशेष रूप से राजा पर लागू होती है, क्योंकि वही उस प्रजा का संरक्षक है जो सबसे अधिक असहाय है।


शासन नहीं सेवा, राजा का असली धर्म यही है


कामान्द्की नीतिसार: एक दृष्टिकोण

नीति, दया और शक्ति का समन्वय

कामान्द्की नीतिसार एक प्राचीन ग्रंथ है जिसमें राजा और राज्य व्यवस्था के लिए व्यावहारिक और नैतिक दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यह ग्रंथ कहता है:

  • राजा को केवल न्यायप्रिय ही नहीं, दया भाव से युक्त भी होना चाहिए।

  • राजधर्म का मर्म है – कृपण जनों की रक्षा, प्रेम और सहानुभूति के साथ।


नीति का मूल तत्व: 'अनृशंसता'

अनृशंसता का अर्थ और उसकी आवश्यकता

अनृशंसता का अर्थ है – क्रूरता से मुक्त व्यवहार, अर्थात् करुणा, संवेदनशीलता और उदारता का समावेश।

"राजा का धर्म केवल दंड देना नहीं, पीड़ित की पीड़ा को समझना भी है।"

यदि राजा प्रजा की पीड़ा को न देखे, तो उसके पास शक्ति होकर भी उसका शासन अधूरा है।


आधुनिक भारत में इस नीति की प्रासंगिकता

समकालीन उदाहरणों के माध्यम से नीति की पुष्टि

प्रधानमंत्री आवास योजना – गरीबों के लिए छत का सपना

सरकार द्वारा चलाई जा रही यह योजना गरीब और बेघर लोगों को घर मुहैया कराती है। यह न केवल विकास है, बल्कि एक करुणामूलक दृष्टिकोण है।

कोविड काल में मुफ्त राशन और टीकाकरण

  • 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज – एक क्रूर समय में संवेदनशीलता की मिसाल।

  • टीकाकरण भी बिना भेदभाव के किया गया – समानता और दया का अनुपम उदाहरण।

न्यायपालिका का मानवीय पक्ष

  • कई न्यायिक निर्णयों में मानवीय दृष्टिकोण देखने को मिला।

  • सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में राहत दी, जैसे लॉकडाउन में प्रवासी मज़दूरों की सहायता के निर्देश।

 यह सब दर्शाता है कि आधुनिक शासन में अनृशंसता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि नीति की परिपक्वता है।


राजा की असली परीक्षा: शक्ति की नहीं, संवेदना की

क्यों आवश्यक है एक करुणामय दृष्टिकोण?

1. दया से विश्वास बनता है

  • एक क्रूर राजा से लोग डरते हैं, लेकिन करुणामय शासक से प्रेम करते हैं।

  • यह प्रेम राष्ट्र की एकता को मज़बूत करता है।

2. करुणा से न्याय की गहराई बढ़ती है

  • न्याय सिर्फ कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि भावनात्मक न्याय भी है।

  • दया से दिया गया निर्णय पीड़ित के हृदय को छूता है।

3. असहायों की रक्षा ही राजधर्म का सार है

  • जो स्वयं की रक्षा नहीं कर सकते, उनके लिए राजा ही ईश्वर समान होता है।

  • ऐसे में राजा की करुणा उनकी आशा बनती है।


केस स्टडी: डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का उदाहरण

डॉ. कलाम, भारत के राष्ट्रपति रहते हुए, कई मृत्युदंड की याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज नहीं करते थे कि वे मामले दोबारा जाँचे जाएँ।

उनका मानना था कि “राष्ट्राध्यक्ष को न्याय के साथ करुणा का प्रतीक भी होना चाहिए।

उनकी यही सोच उन्हें एक “जनप्रिय राष्ट्रपति” बनाती है। वे कामान्द्की नीतिसार के आदर्श शासक की सच्ची छवि प्रस्तुत करते हैं।

नीति से जुड़ी कहावत

"न्याय तब तक अधूरा है जब तक उसमें करुणा न हो।"


शासन केवल शक्ति नहीं, संवेदना भी है

कामान्द्की नीतिसार के इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि एक सच्चा शासक वही होता है जो निर्दयता की जगह दया को प्राथमिकता देता है।

करुणा और संवेदना केवल भावनाएँ नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली राजनीतिक नीति हैं। जब राजा पीड़ितों के आँसू पोंछता है, तब वह अपने धर्म का पालन करता है।

राजा वही, जो करुणा से शासन करे, और न्याय से हृदय जीते।"


FAQs

प्रश्न: क्या करुणा से शासन कमजोर होता है?

उत्तर: नहीं, करुणा शासन को मानवीय बनाती है। शक्ति और दया का संतुलन ही सच्चे शासन की पहचान है।

प्रश्न: क्या आज के लोकतंत्र में 'राजधर्म' जैसी अवधारणाएँ लागू होती हैं?

उत्तर: बिल्कुल। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश – सभी पर जनता के प्रति जवाबदेही होती है, और यह आधुनिक राजधर्म का ही रूप है।


प्राचीन ग्रंथ केवल इतिहास नहीं, बल्कि आज के लिए दिशा भी हैं। कामान्द्की नीतिसार का यह संदेश — कि शासक को दया के साथ शासन करना चाहिए — आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जब हम नेताओं से करुणा और संवेदना की अपेक्षा रखते हैं, तब हम इस नीति को जीवन्त रखते हैं।

आइए, ऐसे समाज की कल्पना करें जहाँ शासन शक्ति के साथ-साथ संवेदना से भी चलता हो – वही होगा सच्चा रामराज्य।

"आपके अनुसार करुणा और शक्ति में से किसका शासन में अधिक महत्व है?"

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