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भारतीय दर्शन में धर्म की आध्यात्मिक गहराई को दर्शाता हुआ ध्यानरत साधु का चित्र |
भारतीय दर्शन में धर्म का महत्व
परिचय
"धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण कला है।"
भारतीय दर्शन में धर्म को जीवन के मूल आधार के रूप में देखा गया है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू को संचालित करने वाला सिद्धांत है। धर्म समाज को अनुशासन में बांधता है, जीवन को उद्देश्य देता है और व्यक्ति को आत्मिक शांति व मोक्ष की ओर ले जाता है।
भारतीय दर्शन की पृष्ठभूमि में धर्म की अवधारणा
भारतीय चिंतन परंपरा में धर्म का अर्थ केवल "Religion" नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक व्यापक और गहन है। "धृ" धातु से व्युत्पन्न 'धर्म' का मूल अर्थ है — धारण करना। अर्थात् जो समाज, व्यक्ति और सृष्टि को धारण करे, वही धर्म है।
धर्म के पांच प्रमुख आयाम
1. समाज में अनुशासन
धर्म से सामाजिक व्यवस्था की नींव
धर्म ही समाज में नैतिक नियमों, कर्तव्यों, और विवेकशील आचरण को निर्धारित करता है। विवाह, शिक्षा, व्यापार, न्याय — सबका संचालन धर्म के आधार पर होता है।
प्राचीन भारत में वर्णाश्रम धर्म
वर्ण और आश्रम प्रणाली ने समाज को कार्य और जीवन चरणों के आधार पर संगठित किया, जिससे सामूहिक अनुशासन और संतुलन बना रहा।
2. कर्म का पालन
कर्मयोग का आधार धर्म
भारतीय दर्शन कर्म को धर्म का अंग मानता है। धर्म बिना कर्म के अधूरा है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य
आज भी जब कोई डॉक्टर, शिक्षक या पुलिसकर्मी अपने कर्तव्य का पालन निष्ठा से करता है, वह धर्म के मार्ग पर चलता है।
3. आध्यात्मिक उन्नति
आत्मा की शुद्धि का मार्ग
धर्म व्यक्ति को स्व-अनुशासन, ध्यान, प्रार्थना और सेवा द्वारा आत्मा के स्तर पर उन्नत करता है। यह अध्यात्म की सीढ़ियाँ चढ़ने में सहायक है।
संतों का जीवन
संत तुलसीदास, कबीर, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों का जीवन इस बात का साक्षी है कि धर्म से ही आत्मिक प्रगति संभव है।
4. मोक्ष की दिशा
धर्म से अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति
मोक्ष भारतीय जीवन दृष्टि का अंतिम लक्ष्य है — जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। धर्म इसका साधन है।
प्रैक्टिकल एंगल
धर्म से संयमित जीवन जीने वाला व्यक्ति मोह-माया से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ता है।
5. नैतिकता का आधार
नैतिक मूल्यों का पोषण
धर्म व्यक्ति में ईमानदारी, सचाई, अहिंसा, दया, क्षमा जैसे नैतिक गुणों का विकास करता है।
समाज पर प्रभाव
जब नागरिक नैतिक होते हैं, तो संपूर्ण राष्ट्र समृद्ध, शांत और स्थिर बनता है। धर्म इसमें आधारस्तंभ है।
निष्कर्ष
भारतीय दर्शन में धर्म केवल एक विश्वास प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक वैज्ञानिक, नैतिक और आध्यात्मिक विधि है। यह समाज को दिशा देता है, व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ बनाता है, और आत्मा को परम सत्य की ओर ले जाता है।
उपयोगी सुझाव:
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धर्म को रूढ़ियों की बजाय आत्म-ज्ञान से समझें।
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जीवन के हर पहलू में धर्म के सार को अपनाएँ।
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धार्मिकता का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि पूरे जीवन का संतुलन है।
FAQs
"धर्म को जीवन में उतारें — जीवन स्वयं दिव्य हो जाएगा।"