भारतीय दर्शन में धर्म का महत्व

भारतीय दर्शन में धर्म की आध्यात्मिक गहराई को दर्शाता हुआ ध्यानरत साधु का चित्र 

भारतीय दर्शन में धर्म का महत्व

परिचय

"धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण कला है।"

भारतीय दर्शन में धर्म को जीवन के मूल आधार के रूप में देखा गया है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू को संचालित करने वाला सिद्धांत है। धर्म समाज को अनुशासन में बांधता है, जीवन को उद्देश्य देता है और व्यक्ति को आत्मिक शांति व मोक्ष की ओर ले जाता है।


भारतीय दर्शन की पृष्ठभूमि में धर्म की अवधारणा

भारतीय चिंतन परंपरा में धर्म का अर्थ केवल "Religion" नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक व्यापक और गहन है। "धृ" धातु से व्युत्पन्न 'धर्म' का मूल अर्थ है — धारण करना। अर्थात् जो समाज, व्यक्ति और सृष्टि को धारण करे, वही धर्म है।

उदाहरण:

रामायण में राम का धर्मराज का पालन केवल राजा होने का नहीं, एक पुत्र, भाई, पति और नागरिक के रूप में भी है।
भगवद्गीता में कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि "स्वधर्मे निधनं श्रेयः", अर्थात् अपने धर्म का पालन सर्वोत्तम है, चाहे उसमें मृत्यु ही क्यों न हो।


धर्म के पांच प्रमुख आयाम

1. समाज में अनुशासन

धर्म से सामाजिक व्यवस्था की नींव

धर्म ही समाज में नैतिक नियमों, कर्तव्यों, और विवेकशील आचरण को निर्धारित करता है। विवाह, शिक्षा, व्यापार, न्याय — सबका संचालन धर्म के आधार पर होता है।

प्राचीन भारत में वर्णाश्रम धर्म

वर्ण और आश्रम प्रणाली ने समाज को कार्य और जीवन चरणों के आधार पर संगठित किया, जिससे सामूहिक अनुशासन और संतुलन बना रहा।


2. कर्म का पालन

कर्मयोग का आधार धर्म

भारतीय दर्शन कर्म को धर्म का अंग मानता है। धर्म बिना कर्म के अधूरा है।


गीता में कहा गया है – "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
अर्थात् व्यक्ति को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल पर नहीं।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य

आज भी जब कोई डॉक्टर, शिक्षक या पुलिसकर्मी अपने कर्तव्य का पालन निष्ठा से करता है, वह धर्म के मार्ग पर चलता है।


3. आध्यात्मिक उन्नति

आत्मा की शुद्धि का मार्ग

धर्म व्यक्ति को स्व-अनुशासन, ध्यान, प्रार्थना और सेवा द्वारा आत्मा के स्तर पर उन्नत करता है। यह अध्यात्म की सीढ़ियाँ चढ़ने में सहायक है।

संतों का जीवन

संत तुलसीदास, कबीर, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों का जीवन इस बात का साक्षी है कि धर्म से ही आत्मिक प्रगति संभव है।


4. मोक्ष की दिशा

धर्म से अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति

मोक्ष भारतीय जीवन दृष्टि का अंतिम लक्ष्य है — जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। धर्म इसका साधन है।


पतंजलि योगसूत्र, उपनिषद और वेदांत धर्म के माध्यम से मोक्ष की व्याख्या करते हैं।

प्रैक्टिकल एंगल

धर्म से संयमित जीवन जीने वाला व्यक्ति मोह-माया से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ता है।


5. नैतिकता का आधार

नैतिक मूल्यों का पोषण

धर्म व्यक्ति में ईमानदारी, सचाई, अहिंसा, दया, क्षमा जैसे नैतिक गुणों का विकास करता है।

समाज पर प्रभाव

जब नागरिक नैतिक होते हैं, तो संपूर्ण राष्ट्र समृद्ध, शांत और स्थिर बनता है। धर्म इसमें आधारस्तंभ है।


निष्कर्ष

भारतीय दर्शन में धर्म केवल एक विश्वास प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक वैज्ञानिक, नैतिक और आध्यात्मिक विधि है। यह समाज को दिशा देता है, व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ बनाता है, और आत्मा को परम सत्य की ओर ले जाता है।

उपयोगी सुझाव:

  • धर्म को रूढ़ियों की बजाय आत्म-ज्ञान से समझें।

  • जीवन के हर पहलू में धर्म के सार को अपनाएँ।

  • धार्मिकता का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि पूरे जीवन का संतुलन है।


FAQs

Q1: क्या धर्म केवल हिंदू धर्म से संबंधित है?
उत्तर: नहीं, धर्म भारतीय दर्शन में एक सार्वभौमिक जीवन पद्धति है जो सभी के लिए समान रूप से प्रासंगिक है।
Q2: क्या धर्म आधुनिक जीवन में भी प्रासंगिक है?
उत्तर: हाँ, धर्म के नैतिक और आत्मिक सिद्धांत आज भी उतने ही आवश्यक हैं, खासकर जब समाज में तनाव, लालच और अनैतिकता बढ़ रही हो।
Q3: क्या कर्म ही धर्म है?
उत्तर: कर्म धर्म का एक प्रमुख अंग है, परंतु केवल कर्म नहीं — भाव, उद्देश्य और नियत भी महत्त्वपूर्ण हैं।

भारतीय दर्शन में धर्म केवल आस्था नहीं, अपितु विज्ञान, नैतिकता और अध्यात्म का समन्वय है। आज के युग में, जब लोग मानसिक शांति और जीवन में संतुलन की तलाश में हैं, धर्म फिर से हमारे लिए पथ-प्रदर्शक बन सकता है।

"धर्म को जीवन में उतारें — जीवन स्वयं दिव्य हो जाएगा।"



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