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वैशेषिक दर्शन में सत्व, गुण और कर्म का प्रतीकात्मक चित्र |
वैशेषिक दर्शन में पदार्थ वर्गीकरण: सत्व, गुण और कर्म
परिचय
क्या आप जानना चाहते हैं कि वैशेषिक दर्शन में पदार्थों को कैसे समझाया गया है? यह दर्शन कणाद मुनि द्वारा स्थापित सोलह-द्रव्य सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें पदार्थों का वर्गीकरण सत्व, गुण और कर्म के आधार पर किया गया है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि तत्त्व क्या है, पदार्थ कैसे अस्तित्व में आते हैं, उनकी प्रकृति क्या होती है, और कैसे वे विभिन्न संघों के रूप में क्रियाशील होते हैं।
“जहाँ तर्क है, वहाँ दर्शन है।”
पृष्ठभूमि – वैशेषिक दर्शन का स्वरूप
वैशेषिक दर्शन भारत के षड्दर्शन (छः विद्यालयों) में से एक है। इसका लक्ष्य द्रव्य-गुण-कर्म के माध्यम से ब्रह्मांड की यथार्थता का विवेचन करना है। इस दर्शन में 25 तत्त्वों की चर्चा की गई है, जिनमें से 6 द्रव्य (पदार्थ), 24 गुण, और 4 कर्म प्रमुख हैं।
सत्व, गुण और कर्म
सत्व (Dravya)
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परिभाषा: वह कौन-सा पदार्थ जिसमें गुण और कर्म स्थित होते हैं।
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उदाहरण: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, आत्मा, आदि।
गुण (Guna)
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परिभाषा: वह विशेषताएँ जो द्रव्य में व्याप्त होती हैं और जिन्हें इंद्रियाँ ग्रहण करती हैं।
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प्रमुख गुण:
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रूप (रूप-गुण)
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गंध (गंध-गुण)
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रस (रस-गुण)
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स्पर्श (स्पर्श-गुण)
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श्रवण (ध्वनि-गुण)
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केस स्टडी: जल में तरलता (स्पर्श-गुण) और शीतलता (गुण) का संयोजन हमारे पेय के अनुभव को निर्धारित करता है।
कर्म (Karma)
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परिभाषा: वह क्रियाएँ जो द्रव्य (पदार्थ) कर सकता है।
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चार प्रकार के कर्म: उत्पादन, विनाश, परिवर्तन, संचार।
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उदाहरण: वायु का संचार (गति), अग्नि का ताप देना (उत्पादन).
तत्त्वों की परिभाषा
मुख्य तत्त्व
वैशेषिक दर्शन में जो तत्त्व हैं, जिन्हें श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
श्रेणी |
तत्त्व |
द्रव्य (पदार्थ) |
यह वह है जो अस्तित्व में है और अनुभव किया जा सकता है। वैशेषिक
दर्शन में द्रव्य को नौ प्रकार का माना गया है: पृथ्वी, जल,
अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन |
गुण (गुणवत्ता) |
रूप, गंध, रस, स्पर्श, ध्वनि, सुख, दुःख, इच्छा
द्वेष, प्रयत्न, संख्या, परिमाण, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, बुद्धि, स्नेह, संस्कार, धर्म
और अधर्म। |
क्रिया (गतिविधि) |
द्रव्य में परिवर्तन लाने वाली शक्ति या कार्य,
जैसे कि उत्पादन, विनाश, परिवर्तन, संचार |
सामान्य
(सामान्यता) |
वस्तुओं में एक जैसी विशेषताएं या समानताएं. (सर्वत्र
व्याप्तता) |
विशेष (विशिष्टता) |
वस्तुओं में विशिष्टता या अंतर. (अलग-अलग
होने की क्षमता) |
समवाय (अंतर्निहितता) |
एक वस्तु का दूसरी वस्तु में अंतर्निहित होना,
जैसे कि रूप का द्रव्य में (गुण-पदार्थ संबंध) |
अभाव (गैर-अस्तित्व |
किसी वस्तु का न होना या उसका अभाव. |
पदार्थों का अस्तित्व
परमाणु और अणु
वैशेषिक दर्शन का परमाणुवाद कहता है कि प्रत्येक स्थूल पदार्थ सूक्ष्म परमाणुओं के संघ से निर्मित है।
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परमाणु: अविनाशी, अणु में अकल्पनीय
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अणु का संघ: विभिन्न परमाणु मिलकर स्थूल जगत का निर्माण करते हैं।
उदाहरण
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जल अणु (H₂O): दो हाइड्रोजन परमाणु + एक ऑक्सीजन परमाणु = वह द्रव जिसे हम पीते हैं।
पदार्थों की प्रकृति
गुण-आधारित व्याख्या
प्रत्येक तत्त्व की विशिष्ट प्रकृति उसके गुणों के आधार पर समझी जाती है:
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पृथ्वी: स्थूलता और गंध
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जल: द्रवता और स्वाद
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अग्नि: ताप और प्रकाश
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वायु: गति और स्पर्श
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आकाश: ध्वनि का माध्यम
व्यवहारिक दृष्टि
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उदाहरण: अग्नि का ताप खाना पकाने में सहायक; इसका प्रकाश अँधेरे में मार्गदर्शन करता है।
पदार्थों के संघ
परमाणुओं का सम्मिलन
परमाणु आपस में मिलकर अणु, फिर अवयव (जैसे जल, अग्नि) का निर्माण करते हैं।
“संघ में ही सृष्टि की विविधता निहित है।”
संघ के प्रकार
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द्रव्य-द्रव्य संघ (पृथ्वी + जल = गीली मिट्टी)
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द्रव्य-गुण-संघ (जल + तरलता)
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परमाणु-परमाणु संघ (H₂ + O → H₂O)
निष्कर्ष
वैशेषिक दर्शन में सत्व, गुण और कर्म के सिद्धांत से पदार्थों का वर्गीकरण न केवल दार्शनिक दृष्टि प्रदान करता है, बल्कि आधुनिक विज्ञान के परमाणु सिद्धांत के अनुरूप भी है। यह दर्शन हमें सिखाता है कि संघ और विभेद दोनों में समृद्धि है, और यही समझ हमें सत्य के और निकट ले जाती है।
“जहाँ तत्त्वों का सम्यक विवेचन है, वहाँ दर्शन का प्रकाश है।”
FAQs
“तत्वों की एकता में ही ब्रह्मांड का सौंदर्य निहित है।”