कामन्दकी नीतिसार: दुष्ट व्यक्ति की वाणी सर्प से भी खतरनाक
कामन्दकी नीतिसार एक महत्वपूर्ण नीति ग्रंथ है जो राजा और प्रजा दोनों के लिए नैतिक शिक्षा और व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करता है। इसमें एक श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि दुष्ट व्यक्ति की वाणी में ऐसा विष होता है जो सीधे मन को आहत करता है, जबकि सर्प केवल शरीर को ही काटता है।
इस नीति का संदेश स्पष्ट है — वाणी में मधुरता होनी चाहिए, क्योंकि कटु भाषा से रिश्ते, समाज और शांति तीनों ही नष्ट हो सकते हैं। यह विचार आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है जहाँ संवाद ही सबसे बड़ा साधन है।
कामंदकी नीतिसार, एक प्रसिद्ध नीति ग्रंथ, हमें जीवन की गूढ़ सच्चाइयों से अवगत कराता है। इसमें कहा गया है कि "दुष्ट व्यक्ति सर्प के समान होता है..."
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दुष्ट व्यक्ति की वाणी और सर्प के विष की तुलना
- सर्प के विष का शारीरिक प्रभाव - सर्प का विष शरीर को नुकसान पहुँचाता है, पर यह असर सीमित समय तक रहता है। चिकित्सा से इसे ठीक किया जा सकता है।
- दुष्ट वाणी का मानसिक प्रभाव- दुष्ट व्यक्ति की वाणी समाज और आत्मा को विषाक्त कर सकती है। इसका प्रभाव भावनात्मक और सामाजिक जीवन पर दीर्घकालिक होता है।
दुष्ट व्यक्ति के वाणी के प्रकार
- छल और कपट- दुष्ट व्यक्ति अपनी वाणी से छल करता है, जिससे दूसरों को भ्रमित कर अपने स्वार्थ साधता है।
- विषैली भाषा और उसका प्रभाव- रामायण की मंथरा इसका उदाहरण है, जिसकी विषैली वाणी ने समूचे राज्य को संकट में डाल दिया।
दुष्ट व्यक्ति से बचने के उपाय
- सज्जन लोगों की संगति करें
- विवेक से निर्णय लें
- धैर्य और आत्मसंयम बनाए रखें
निष्कर्ष
सर्प केवल शरीर को डसता है, लेकिन दुष्ट व्यक्ति जीवनभर विष फैलाता है। इसलिए सतर्क रहें और ऐसी वाणी से बचें।
FAQs
Q1: कामन्दकी नीतिसार में दुष्ट व्यक्ति की तुलना सर्प से क्यों की गई है?
क्योंकि दुष्ट व्यक्ति की वाणी समाज और आत्मा को भी विषाक्त कर सकती है, जो सर्प के विष से भी अधिक खतरनाक होती है।
Q2: दुष्ट व्यक्ति की पहचान कैसे करें?
मीठी बातें करना, पीठ पीछे निंदा करना और स्वार्थ के लिए धोखा देना उसकी पहचान है।
Q3: दुष्ट व्यक्ति से कैसे बचें?
विवेक से सोचें, सज्जनों की संगति करें और भावनाओं में बहने से बचें।