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राजा का कर्तव्य है राष्ट्र का संरक्षण और विकास |
विषय सूची
- प्रस्तावना
- श्लोक और अनुवाद
- सप्ताङ्ग सिद्धांत की व्याख्या
- राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका
- राजा का कर्तव्य
- आधुनिक संदर्भ
- तुलनात्मक दृष्टि
- निष्कर्ष
- प्रश्नोत्तर
- पाठकों के लिए सुझाव
- संदर्भ
प्रस्तावना
भारतीय दर्शन केवल आध्यात्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गहरी राजनीतिक सोच भी शामिल है। कामन्दकीय नीतिसार इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस ग्रंथ में बताया गया है कि राज्य किन तत्वों से बनता है और राजा का वास्तविक कर्तव्य क्या है।
नीतिसार का यह श्लोक कहता है, राज्य के सभी अंगों का अस्तित्व राष्ट्र पर आधारित है। यदि राष्ट्र ही कमजोर या असुरक्षित हो, तो राज्य की अन्य शक्तियाँ जैसे सेना, खजाना या मित्रता भी बेकार साबित होंगी। यही कारण है कि राजा को सबसे पहले राष्ट्र के उत्थान पर ध्यान देना चाहिए।
श्लोक और अनुवाद
राज्याङ्गानां तु सर्वेषां राष्ट्रे भवति सम्भवः।
तस्मात् सपर्ययत्नेन राजा राष्ट्रं प्रसाधयेत्॥
भावार्थ -राज्य के सभी अंगों का अस्तित्व राष्ट्र में ही निहित है। इसलिए राजा को चाहिए कि वह विशेष परिश्रम करके राष्ट्र का पोषण और विकास करे।
यहाँ राष्ट्र का अर्थ केवल भूभाग से नहीं है, बल्कि भूमि और प्रजा दोनों से है।
सप्ताङ्ग सिद्धांत की व्याख्या
कामन्दक और कौटिल्य जैसे आचार्यों ने राज्य को सात अंगों में विभाजित किया-
- राजा (King): शासन का प्रमुख।
- अमात्य (Ministers): प्रशासनिक सहयोगी।
- राष्ट्र (Territory & People): प्रजा और भू-क्षेत्र।
- दुर्ग (Fort/Defense): सुरक्षा का ढाँचा।
- कोश (Treasury): आर्थिक शक्ति।
- दण्ड (Army & Authority): रक्षा और अनुशासन।
- मित्र (Allies): अंतरराष्ट्रीय संबंध।
इनमें से सबसे मूलभूत अंग राष्ट्र है। राष्ट्र के बिना शेष सभी निरर्थक हैं।
राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका
राष्ट्र में दो मुख्य तत्व हैं: प्रजा और भूमि।
- प्रजा कर देती है, उत्पादन करती है, और सेना को आधार देती है।
- भूमि संसाधन देती है, खेती और व्यापार का माध्यम है।
- राष्ट्र कमजोर होगा तो खजाना खाली होगा, सेना असहाय होगी और राजा बेकार।
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सप्ताङ्ग सिद्धांत की व्याख्या |
इसलिए राष्ट्र की समृद्धि और सुरक्षा ही राज्य की असली नींव है।
राजा का कर्तव्य
कामन्दकीय नीतिसार स्पष्ट कहता है कि राजा का पहला धर्म राष्ट्र को समृद्ध करना है। इसमें शामिल है—
- रक्षा: बाहरी शत्रुओं से सुरक्षा।
- पोषण: प्रजा की आर्थिक और सामाजिक देखभाल।
- न्याय: सभी को समान अवसर और न्याय देना।
- विकास: कृषि, व्यापार और कला को प्रोत्साहन।
एक अच्छा राजा वही है जो प्रजा को परिवार की तरह समझे और उनकी उन्नति को अपना कर्तव्य माने।
आधुनिक संदर्भ
आज लोकतंत्र में राजा नहीं, बल्कि सरकार है। फिर भी सिद्धांत वही है-राष्ट्र सर्वोपरि।
- सरकार तभी सफल है जब जनता का विश्वास जीत सके।
- विकास योजनाएँ तभी सार्थक हैं जब आम नागरिक तक पहुँचे।
- सेना, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति सब जनता की शक्ति पर निर्भर हैं।
- भारत के संविधान की प्रस्तावना भी यही कहती है—“We, the People of India...”
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प्राचीन और आधुनिक तुलना |
यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्र (जनता) ही असली मालिक है।
तुलनात्मक दृष्टि
राजा, राष्ट्र और जनता के केंद्र में राज्य-चिन्तन
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र
- कौटिल्य (चाणक्य) का दृष्टिकोण राजा-केंद्रित है।
- उनके अनुसार राजा ही राज्य का प्रधान अंग है, जिसके चारों ओर अन्य सभी राज्यांग व्यवस्थित होते हैं।
- यदि राजा धर्मनिष्ठ, बुद्धिमान और पराक्रमी है तो पूरा राष्ट्र स्वतः उन्नति करता है।
- राजा का व्यक्तित्व ही राज्य की स्थिरता और सुरक्षा का आधार है।
चाणक्य ने राजा को राज्य का "हृदय" माना है।
- कामन्दकीय नीतिसार
- कामन्दक का दृष्टिकोण राष्ट्र-केंद्रित है।
- उनके अनुसार केवल राजा या मंत्री नहीं, बल्कि पूरा राष्ट्र सात अंगों (सप्ताङ्ग) से मिलकर बनता है।
- इनमें से किसी एक के कमजोर होने पर राष्ट्र अपूर्ण हो जाता है।
- इसलिए राजा का कर्तव्य केवल स्वयं की सत्ता को मजबूत करना नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र को सुदृढ़ करना है।
कामन्दक ने राष्ट्र को "जीवित शरीर" माना, जिसके सातों अंग मिलकर उसकी शक्ति और अस्तित्व को परिभाषित करते हैं।
- आधुनिक लोकतंत्र
- आधुनिक लोकतंत्र का झुकाव कामन्दकीय सिद्धांत के निकट है।
- आज की शासन व्यवस्था में राजा/शासक सर्वोच्च शक्ति नहीं है, बल्कि जनता ही सर्वोच्च शक्ति है।
- संविधान, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और सुरक्षा तंत्र, ये सब राष्ट्र के अंग हैं, जिन्हें जनता की इच्छा और सहभागिता से संचालित किया जाता है।
इस प्रकार आधुनिक लोकतंत्र कहता है कि “राजा राष्ट्र के लिए है, राष्ट्र राजा के लिए नहीं।”
- संक्षेप में तुलना
कामन्दकीय नीतिसार का यह श्लोक हमें यह शिक्षा देता है कि शासन का असली केंद्र राष्ट्र है। राजा या सरकार तभी सफल है जब वह राष्ट्र की सेवा और विकास करे। प्रजा की संतुष्टि ही राज्य की स्थिरता और शक्ति की गारंटी है।
प्रश्नोत्तर
Q1. कामन्दकीय नीतिसार किसने लिखा?
आचार्य कामन्दक ने।
Q2. सप्ताङ्ग सिद्धांत में कौन-कौन से अंग आते हैं?
राजा, मंत्री, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, दण्ड और मित्र।
Q3. राष्ट्र और राज्य में क्या अंतर है?
राष्ट्र भूमि और प्रजा है, जबकि राज्य उसमें शासन और संस्थाएँ जोड़ देता है।
Q4. यह शिक्षा आज क्यों प्रासंगिक है?
क्योंकि आज भी सरकार की सफलता जनता की संतुष्टि पर निर्भर करती है।
राष्ट्र ही राज्य की आत्मा है। शासक बदलते रहते हैं, परंतु राष्ट्र स्थायी है। इसलिए हर सरकार का सबसे बड़ा कर्तव्य है राष्ट्र की रक्षा और उन्नति।
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पाठकों के लिए सुझाव
- अर्थशास्त्र (कौटिल्य) और शुक्रनीति भी पढ़ें।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना को बार-बार पढ़ें- इसमें राष्ट्र की आत्मा झलकती है।
- राष्ट्रहित पर केंद्रित नीतियाँ ही लंबे समय तक टिकती हैं।