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सांख्य दर्शन के पंचतत्त्व और प्रकृति की भूमिका दर्शाता चित्र |
सांख्य दर्शन और प्रकृति के तत्त्व – एक दार्शनिक विज्ञान
परिचय
क्या आपने कभी सोचा है कि ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ? भारतीय दर्शन में सांख्य दर्शन वह परंपरा है, जो बिना किसी ईश्वर पर निर्भर हुए, तर्क और तत्वों के आधार पर सृष्टि की उत्पत्ति को स्पष्ट करती है। यह दर्शन ऋषि कपिल द्वारा प्रतिपादित हुआ और योग दर्शन की नींव भी यही दर्शन रखता है।
सांख्य दर्शन की पृष्ठभूमि
सांख्य दर्शन भारतीय षड्दर्शन (छह दर्शनों) में से एक है, जो द्वैत दर्शन पर आधारित है — यहाँ पुरुष (चेतन आत्मा) और प्रकृति (अचेतन तत्व) को दो अलग सत्ता मानी जाती है।
प्रकृति के पांच प्रमुख तत्त्व
1. पंचमहाभूत — आधारभूत प्राकृतिक तत्व
सांख्य में 25 तत्वों का वर्णन है, लेकिन पंचमहाभूत मुख्य रूप से वे तत्व हैं जिनसे स्थूल जगत निर्मित होता है:
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पृथ्वी (गंध)
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जल (रस)
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तेज/अग्नि (रूप)
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वायु (स्पर्श)
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आकाश (श्रवण)
ये तत्त्व तन्मात्राओं से उत्पन्न होते हैं, जो प्रकृति के सूक्ष्म भाव हैं।
2. संयोजन से सृष्टि की उत्पत्ति
प्रकृति की क्रिया से महत्त (बुद्धि), अहंकार और फिर मन तथा इंद्रियाँ उत्पन्न होती हैं। यही तत्व जगत के निर्माण में सहायक होते हैं।
उदाहरण: जैसे एक बीज (प्रकृति) से अंकुर (महत्त), फिर शाखाएं (अहंकार), और फिर पत्ते (इंद्रियाँ) निकलते हैं – उसी प्रकार सृष्टि भी प्रकृति से क्रमबद्ध रूप में विकसित होती है।
पुरुष की भूमिका: साक्षी चेतना
पुरुष – निष्क्रिय लेकिन चेतन
सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष न कर्ता है न भोक्ता। वह केवल साक्षी है – देखनेवाला। उसकी उपस्थिति से ही प्रकृति की क्रिया प्रारंभ होती है।
प्रकृति नर्तकी है, और पुरुष उसका दर्शक।
मन और बुद्धि का विवेचन
मन, बुद्धि और अहंकार
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बुद्धि (महत्त): विवेकशील शक्ति।
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अहंकार: “मैं” और “मेरा” का भाव।
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मन: इंद्रियों से प्राप्त सूचनाओं का समन्वय।
इनका संयोजन ही मनुष्य के निर्णय, अनुभूति और चेतना का आधार बनता है।
योग से संबंध – सांख्य की व्यावहारिक शाखा
सांख्य दर्शन + योग = मुक्ति की ओर मार्ग
योगदर्शन (पतंजलि योगसूत्र) ने सांख्य के सिद्धांतों को ही क्रियात्मक रूप में अपनाया:
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सांख्य: ज्ञान का मार्ग (जैसे शास्त्र अध्ययन)
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योग: अभ्यास का मार्ग (जैसे ध्यान और संयम)
"सांख्य बिना योग अधूरा है, और योग बिना सांख्य गूढ़।"
निष्कर्ष
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प्रकृति के पंचतत्त्व जगत की रचना करते हैं।
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पुरुष चेतन है, लेकिन क्रियावान नहीं।
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बुद्धि, मन और अहंकार की सही पहचान ही आत्मज्ञान का द्वार खोलती है।
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योग के माध्यम से सांख्य के ज्ञान को जीवन में उतारा जा सकता है।
"स्वयं को जानना ही ब्रह्मांड को जानने की पहली सीढ़ी है।"
FAQs
उत्तर: नहीं, सांख्य दर्शन ईश्वर को सृष्टि के कारण के रूप में नहीं मानता। यह सृष्टि की व्याख्या तत्त्वों और चेतन पुरुष के आधार पर करता है।
Q2: सांख्य और योग में क्या संबंध है?
उत्तर: योग सांख्य का व्यावहारिक पक्ष है। जहाँ सांख्य ज्ञान देता है, वहीं योग उस ज्ञान को साधना में बदलता है।
Q3: पंचमहाभूत का उपयोग आधुनिक विज्ञान में कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर: इन्हें भौतिक तत्वों के प्रतीकात्मक स्वरूप मान सकते हैं — जैसे पृथ्वी = ठोस, जल = द्रव, अग्नि = ऊर्जा, वायु = गैस, आकाश = स्पेस।
"जो स्वयं को प्रकृति से भिन्न जान लेता है, वही सच्चे अर्थों में स्वतंत्र होता है।"