राजा का कर्तव्य | प्रजाहित और उत्तराधिकारी की सुरक्षा

क्या आपने कभी सोचा है कि एक राजा या नेता का सबसे बड़ा कर्तव्य क्या होता है, सिर्फ शासन चलाना या आने वाले भविष्य को सुरक्षित करना?
कामन्दकी  नीतिसार में राजा का कर्तव्य  उत्तराधिकारी की सुरक्षा
Keywords -  राजा का कर्तव्य, कामन्दकी नीतिसार, प्रजाहित, उत्तराधिकारी की सुरक्षा, राजधर्म

राजा का कर्तव्य | प्रजाहित और उत्तराधिकारी की सुरक्षा


विषयसूचि

  • प्रस्तावना
  • श्लोक और उसका सन्देश
  • प्रजाहित और उत्तराधिकारी सुरक्षा का महत्व
  • ऐतिहासिक उदाहरण
  • आधुनिक परिप्रेक्ष्य
  • नीति से मिलने वाली शिक्षाएँ
  • निष्कर्ष
  • प्रश्नोत्तर
  • पाठकों के लिए सुझाव
  • संदर्भ


परिचय

कामन्दकी नीतिसार, प्राचीन भारतीय राजनीतिक ग्रंथ, हमें यही शिक्षा देता है कि प्रजाहित और उत्तराधिकारी की सुरक्षा दोनों समान रूप से आवश्यक हैं। श्लोक “प्रजात्मश्रेयसे राजा कुर्वीतात्मजरक्षणम्” यही स्पष्ट करता है कि यदि उत्तराधिकारी सुरक्षित नहीं रहेगा, तो लोभी लोग उसका नाश कर सकते हैं और परिणामस्वरूप प्रजाजन भी असुरक्षित हो जाएंगे। यह शिक्षा केवल प्राचीन राजाओं तक सीमित नहीं, बल्कि आज की राजनीति, समाज और परिवार में भी उतनी ही उपयोगी है।

श्लोक और उसका मूल सन्देश

प्रजात्मश्रेयसे राजा कुर्वीतात्मजरक्षणम् ।
लोलुभ्यमानास्तेऽर्थेषु हन्युरेनमरक्षिताः ॥
(कामन्दकीय नीतिसार 7/01)
  • प्रजात्मश्रेयसे- प्रजा = प्रजा, जनता, आत्म = अपनी / स्वयं, श्रेयसे = कल्याण के लिए
  • राजा- शासक, नरेश, राजा
  • कुर्वीत- करना चाहिए / करना उचित है
  • आत्मजरक्षणम्- आत्म = स्वयं, अपने, ज = जन्म से मिला (यहाँ प्राण / जीवन), रक्षणम् = रक्षा करना
  • लोलुभ्यमानाः- लो = अधिक, लुभ्यमानाः = लालची / लोभ करने वाले
  • तेऽर्थेषु - ते = वे (शत्रु), अर्थेषु = धन/संपत्ति/सत्ता में
  • हन्युः - मार देंगे / नष्ट कर देंगे
  • एनम् - उसे (राजा को)
  • अरक्षिताः - अ = न (नकार), रक्षिताः = रक्षित / सुरक्षित

भावार्थ
राजा को चाहिए कि वह प्रजा के कल्याण के लिए अपने प्राणों की रक्षा करे। यदि राजा असुरक्षित रहेगा तो लालची शत्रु उसे धन–संपत्ति की चाह में मार डालेंगे। यह श्लोक बताता है कि राजा को अपने और प्रजा के हित के लिए अपने उत्तराधिकारी की रक्षा करनी चाहिए। अगर भविष्य की बागडोर असुरक्षित होगी तो पूरी व्यवस्था संकट में पड़ जाएगी।

प्रजाहित और उत्तराधिकारी सुरक्षा का महत्व

किसी भी राज्य, समाज या संगठन की स्थिरता केवल वर्तमान नेतृत्व पर नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी की तैयारी और सुरक्षा पर भी टिकी होती है। यदि वर्तमान नेता प्रजा का भला करता है लेकिन उत्तराधिकारी की रक्षा नहीं करता, तो भविष्य में वही असुरक्षा प्रजा के लिए संकट बन जाती है।

1. प्रजाहित और उत्तराधिकारी का गहरा संबंध

  • प्रजाहित का अर्थ केवल तत्कालीन सुख-सुविधा देना नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखना भी है।
  • जब उत्तराधिकारी सुरक्षित और सक्षम होता है, तभी शासन की निरंतरता बनी रहती है और प्रजा को भविष्य के लिए भी विश्वास मिलता है।

2. उत्तराधिकारी ही भविष्य का संरक्षक

  • उत्तराधिकारी केवल सत्ता का वारिस नहीं होता, बल्कि वह उस राज्य, परिवार या संगठन की परंपरा, मूल्य और सुरक्षा का संरक्षक होता है।
  • यदि उत्तराधिकारी असुरक्षित या अप्रशिक्षित रह जाए, तो बाहरी आक्रमणकारियों, लोभियों और षड्यंत्रकारियों के लिए राज्य को तोड़ना आसान हो जाता है।

3. ऐतिहासिक सन्दर्भ से प्रमाण

  • मौर्य साम्राज्य अशोक के समय सुदृढ़ था, परंतु उसके बाद उत्तराधिकारियों की कमजोर सुरक्षा और अक्षमता ने साम्राज्य को बिखेर दिया।
  • मुगल साम्राज्य में औरंगज़ेब की उत्तराधिकार लड़ाई ने राज्य को कमजोर कर दिया।
  • महाभारत में अभिमन्यु जैसे उत्तराधिकारी की मृत्यु ने पांडवों की शक्ति को गहरा आघात पहुँचाया।

4. आधुनिक संदर्भ

  • राजनीति में यदि नई पीढ़ी के नेता सुरक्षित, शिक्षित और प्रशिक्षित नहीं होंगे, तो लोकतंत्र अस्थिर हो सकता है।
  • परिवार और समाज में संतान की सुरक्षा और शिक्षा ही भविष्य की स्थिरता की कुंजी है।
  • कॉर्पोरेट जगत में यदि नेतृत्व का अगला उत्तराधिकारी तैयार न किया जाए, तो पूरी संस्था डगमगा सकती है। 

प्रजाहित और उत्तराधिकारी सुरक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक दूरदर्शी राजा या नेता केवल वर्तमान की नहीं, बल्कि आने वाले कल की भी चिंता करता है।

इस नीति से मिलने वाली शिक्षाएँ

  • भविष्य की सुरक्षा वर्तमान का दायित्व है।
  • केवल सत्ता संभालना ही पर्याप्त नहीं, निरंतरता और स्थिरता जरूरी है।
  • लालच और षड्यंत्र से बचाने के लिए मजबूत सुरक्षा व संस्कार आवश्यक हैं।

निष्कर्ष

कामंडकीय नीतिसार का यह श्लोक हमें यह याद दिलाता है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो केवल आज नहीं, बल्कि कल की भी चिंता करता है। प्रजाहित और उत्तराधिकारी की सुरक्षा दोनों ही स्थायी शासन और समाज की नींव हैं।

प्रश्नोत्तर

Q1. इसमें मुख्य शिक्षा क्या है?
प्रजा और उत्तराधिकारी की रक्षा राजा का अनिवार्य कर्तव्य है।
Q2. आज के समय में यह कैसे लागू होता है?
राजनीति, परिवार और संगठनों में अगली पीढ़ी को सुरक्षित और सक्षम बनाना आवश्यक है।


किसी भी व्यवस्था की सबसे बड़ी शक्ति उसकी अगली पीढ़ी है। अगर वर्तमान नेतृत्व उसकी रक्षा और प्रशिक्षण करेगा तो भविष्य उज्ज्वल होगा।
  • अगर आपको यह लेख उपयोगी लगा तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें।
  • हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करें और भारतीय दर्शन से जुड़ी और भी गहरी बातें जानें।

पाठकों के लिए सुझाव

  • कामन्दकी नीतिसार के अन्य श्लोक पढ़ें।
  • भारतीय राजनीतिक दर्शन और आधुनिक शासन की तुलना करें।
  • अपने परिवार/संगठन में “उत्तराधिकारी सुरक्षा” के विचार को अपनाएँ।

संदर्भ


और नया पुराने