आज की भागती जिंदगी में रिश्तों के बीच सबसे पहले जो चीज खोती है, वह है- सम्मान और शालीनता। पर हमारे प्राचीन नीतिग्रंथ बताते हैं कि छोटे-छोटे संस्कार भी विवाह को सुंदर और स्थिर बना सकते हैं।
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| कमन्दकीय नीतिसार में वर्णित दाम्पत्य शुचिता का सांकेतिक दृश्य। |
- परिचय
- श्लोक, शब्दार्थ और भावार्थ
- नीतिसार के मूल सिद्धांत
- दाम्पत्य संबंधों में शुचिता का महत्व
- आधुनिक जीवन में इस श्लोक का अर्थ
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से लाभ
- सीख क्या मिलती है
- निष्कर्ष
- प्रश्नोत्तर
- पाठकों के लिए सुझाव
- संदर्भ
परिचय
कई बार हम दिखावा तो नहीं करते, लेकिन रिश्तों में एक अनकहा ढीलापन आ जाता है। धीरे-धीरे व्यवहार साधारण हो जाता है, फिर साधारण से भी नीचे। कहते हैं कि सम्मान शब्दों से नहीं, आदतों से झलकता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथ कमन्दकीय-नीतिसार में इस आदत को एक सुंदर रूप में समझाया गया है- कैसे पति-पत्नी एक-दूसरे के पास शुचिता और सौंदर्य के साथ जाएं, ताकि संबंध में पवित्रता और आदर बना रहे। यही श्लोक आज हम विस्तार से समझ रहे हैं।
श्लोक
स्नातोऽनुलिप्तसुरभिः स्रग्बी रुचिरभूषणः ।
स्नातां विशुद्धवसनां गच्छेद्देवी सुन्नूपणाम् ॥
(कमन्दकीय नीतिसार 7/49)
शब्दार्थ
- स्नातः - स्नान करके
- अनुलिप्त-सुरभिः - सुगंध (चन्दन आदि) से लेपित
- स्रग्वी - फूलों की माला पहने
- रुचिर-भूषणः - सुन्दर आभूषण धारण किए हुए
- स्नाताम् - स्नान की हुई
- विशुद्ध-वसनाम् - स्वच्छ वस्त्र पहने
- देवीम् - पत्नी या रानी
- गच्छेत् - जाना / मिलना
- सुन्नूपणाम् - नथ पहने
भावार्थ
पति अपनी पत्नी के पास जाए तो साफ कपड़े पहनकर, सुगंधित होकर, सरल आभूषण और फूलों की माला से सुसज्जित होकर जाए। पत्नी भी शुद्ध वस्त्र में, स्नान करके, सौम्य अलंकरण के साथ हो। यह श्लोक केवल साज-सज्जा का नियम नहीं, बल्कि सम्मान, पवित्रता और मानसिक ताजगी का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत है।
नीतिसार के मूल सिद्धांत इस श्लोक में
- शारीरिक शुचिता- संपर्क पवित्र करता है।
- सुगंध और सौंदर्य- मन को प्रसन्न रखते हैं।
- सादगी में सज्जा- बिना दिखावे का सम्मान।
- परस्पर आदर- गृहस्थ जीवन की नींव।
- मानसिक तैयारी- रिश्ते में प्रवेश शरीर से पहले मन का होता है।
दाम्पत्य संबंधों में शुचिता का महत्व
- यह मन में सम्मान पैदा करती है
- साफ-सुथरी उपस्थिति रिश्ते में स्वाभाविक आदर पैदा करती है।
- यह मानसिक फ्रेशनस लाती है
- सुगंध, ताजा वस्त्र और हल्की सज्धा एक शांत वातावरण बनाते हैं।
- यह अनावश्यक रूखापन ख़त्म करती है
- काम का तनाव, थकान, रोजमर्रा का दबाव
- एक छोटा-सा स्नान और सज्जा इन सबको हल्का कर देती है।
- यह पारिवारिक संस्कृति बनाती है
- संस्कार हर दिन की छोटी आदतों से बनते हैं, बड़े उपदेशों से नहीं।
आधुनिक जीवन में इस श्लोक का अर्थ
- कई लोग सोचते हैं कि यह केवल “राजा” या “प्राचीन समय” के लिए है।
- पर असल में यह आज के रिश्तों पर और भी ज्यादा लागू होता है।
- रिश्ते में ‘प्रेज़ेंटेबल’ रहना
- कपड़े कितने महंगे नहीं- कितने साफ और सुचारु हैं, यह महत्वपूर्ण है।
- तनाव भरे दिन बाद घर में प्रवेश की तैयारी
- नीतिसार कहता है कि घर प्रवेश ही पवित्र क्रिया है।
- दो मिनट पानी से चेहरे को धो लेना भी वही भाव है।
- साथी को महत्व देना
- आप कैसे दिख रहे हैं यह खुद के लिए नहीं- अपने साथी के सम्मान के लिए है।
- घरेलू वातावरण का प्रभाव
- सुगंध, हल्की साज-सज्जा, सुंदर वेश- ये सब वातावरण को शांत करते हैं।
- आज की भाषा में यह “emotional hygiene” है।
- आधुनिक विवाहित जीवन में boundaries
- यह श्लोक बताता है- संबंध की तैयारी भी संबंध का ही हिस्सा है।
मनोवैज्ञानिक लाभ
- आत्मविश्वास बढ़ता है
- शरीर की सफाई मानसिक हल्कापन देती है
- साथी के प्रति सम्मान गहरा होता है
- कम तनाव, अधिक जुड़ाव
- संवाद सहज होता है
सीख क्या मिलती है
- पवित्रता बाहरी नहीं, अंदर की स्थिति तैयार करती है।
- थोड़ा-सा समय और साज-सज्जा रिश्तों में गहराई लाती है।
- सम्मान शब्दों से नहीं, आदतों से दिखाई देता है।
- रिश्ते में “तैयार होकर मिलना” एक सांस्कृतिक मूल्य है।
निष्कर्ष
कमन्दकीय नीतिसार का यह श्लोक सरल लगता है, लेकिन इसकी गहराई सीधे मन और संबंधों से जुड़ी है। यह दिखावा नहीं, यह “मैं तुम्हें सम्मान देता हूँ” का सबसे सुंदर तरीका है। आज के समय में जब रिश्ते छोटी-छोटी बातों से तनावग्रस्त हो जाते हैं, ऐसा छोटा संस्कार विवाह को स्थिर, शांत और प्रेमपूर्ण बनाता है।
प्रश्नोत्तर (FAQ)
1. क्या यह साज-सज्जा अनिवार्य है?
नहीं। यह दिखावे के लिए नहीं, पवित्रता और सम्मान के लिए है।
2. क्या आधुनिक कपड़े भी स्वीकार्य हैं?
हाँ। मुख्य बात साफ, सुसज्जित, सौम्य और सम्मानजनक उपस्थिति है।
3. क्या यह केवल पुरुष के लिए है?
नहीं। श्लोक दोनों के लिए है- पति भी, पत्नी भी।
4. क्या यह परंपरा आज प्रैक्टिकल है?
बहुत ज्यादा- साफ-सुथरी उपस्थिति मनोवैज्ञानिक रूप से संबंधों को मजबूत करती है।
यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि आदमी का असली व्यक्तित्व उसके पहनावे में नहीं, उसकी पेशगी तैयारी में होता है। यही तैयारी रिश्तों को सुंदर और स्थायी बनाती है।
पाठकों के लिए सुझाव
- घर लौटने पर खुद को दो मिनट फ्रेश करें
- साथी से मिलते समय आराम और शुचिता रखें
- हल्की सुगंध का प्रयोग करें
- घर में दिखावे की नहीं, सादगी की सुंदरता रखें
संदर्भ
