अक्सर, जो राज्य हमारे सबसे निकट होते हैं, वही हमारे सबसे बड़े शत्रु बन जाते हैं, जबकि दूर स्थित राज्य मित्र और सहयोगी प्रतीत होते हैं। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक भौगोलिक अनिवार्यता है।
इस सत्य को भारत के महान रणनीतिकारों ने लगभग दो हज़ार वर्ष पहले ही स्पष्ट कर दिया था।
भारतीय राजनीतिक चिंतन परंपरा में विदेश नीति के क्षेत्र में सबसे यथार्थवादी सिद्धांत मंडल सिद्धांत (Circle of States) है, जिसका व्यवस्थित प्रतिपादन आचार्य कामन्दक ने कामन्दकीय नीतिसार में किया।
यह सिद्धांत राजा को सिखाता है:
- किसे मित्र मानना है
- किसे शत्रु
- और सबसे महत्वपूर्ण, किस समय किसके साथ कैसा व्यवहार करना है
मंडल सिद्धांत क्या है?
मंडल सिद्धांत यह मानता है कि राज्यों के संबंध स्थायी मित्रता या स्थायी शत्रुता पर आधारित नहीं होते। वे निर्भर करते हैं:
- भौगोलिक स्थिति
- शक्ति संतुलन
- और राजनीतिक हितों पर
राज्य का हित सर्वोपरि है, और जब तक राजा अपने चारों ओर स्थित राज्यों के चक्र को नहीं समझता, तब तक वह अपने हितों की रक्षा नहीं कर सकता।
श्लोक, शब्दार्थ और भावार्थ
श्लोक
पाष्णिग्राहः स्मृतः पश्चादाक्रन्दस्तदनन्तरम् ।आसारावनयोश्चैव विजिगीषोस्तु मण्डलम् ॥(कामन्दकीय नीतिसार)
शब्दार्थ
- पाष्णिग्राहः – पीछे से आक्रमण करने वाला शत्रु
- आक्रन्दः – सहायता के लिए पुकारने वाला मित्र
- आसार – सहायक राज्य
- विजिगीषुः – विजय की इच्छा रखने वाला राजा
- मण्डलम् – राज्यों का राजनीतिक चक्र
भावार्थ
विजिगीषु राजा के राजनीतिक मंडल में, उसकी पीठ की ओर सबसे पहले पाष्णिग्राह स्थित होता है और उसके बाद आक्रन्द। इन दोनों के सहायक राज्य भी मंडल का हिस्सा होते हैं। यह श्लोक मंडल के पीछे के राज्यों की क्रमिक संरचना स्पष्ट करता है।
विजिगीषु और भौगोलिक अनिवार्यता
मंडल सिद्धांत का केंद्र विजिगीषु होता है। वह राजा जो अपने राज्य की सुरक्षा और विस्तार चाहता है।
मंडल सिद्धांत का मूल सूत्र है:
भूगोल ही राजनीति की दिशा तय करता है।
यही कारण है कि:
- तत्काल पड़ोसी स्वाभाविक शत्रु होता है
- और शत्रु का पड़ोसी स्वाभाविक मित्र
राज्यों का बारह-चक्र (Twelve Circles of States)
कामन्दकीय नीतिसार में कुल 12 प्रकार के राज्यों का वर्णन मिलता है।
1. अग्रिम पंक्ति के राज्य
- अरि – तत्काल शत्रु
- मित्र – शत्रु का शत्रु
- अरिमित्र – शत्रु का सहयोगी
- मित्रमित्र – मित्र का मित्र
- अरिमित्रमित्र – शत्रु के मित्र का मित्र
यह क्रम दर्शाता है कि जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, प्रभाव घटता जाता है।
2. पीछे की ओर के राज्य (पाष्णि भाग)
- पाष्णिग्राह – पीछे से हमला करने वाला
- आक्रन्द – पाष्णिग्राह का शत्रु
- पाष्णिग्राहासार – पाष्णिग्राह का सहायक
- आक्रन्दासार – आक्रन्द का सहायक
यह भाग बताता है कि राजा को सिर्फ सामने ही नहीं, पीछे की सुरक्षा पर भी बराबर ध्यान देना चाहिए।
3. मध्यस्थ और उदासीन राज्य
- मध्यम राज्य – विजिगीषु और अरि दोनों से अधिक शक्तिशाली
- उदासीन राज्य – अत्यधिक शक्तिशाली और दूरस्थ
इनकी भूमिका शक्ति संतुलन बनाए रखने की होती है।
षडगुण नीति: मंडल सिद्धांत का व्यवहारिक रूप
मंडल सिद्धांत के साथ जुड़ी है षडगुण नीति:
- संधि – मित्रों से गठबंधन
- विग्रह – शत्रु से युद्ध
- यान – सैन्य दबाव
- आसन – प्रतीक्षा और तटस्थता
- द्वैधीभाव – दोहरी नीति
- संश्रय – शक्तिशाली राज्य की शरण
एक कुशल विजिगीषु इन्हें परिस्थिति के अनुसार अपनाता है।
मंडल सिद्धांत और यथार्थवादी कूटनीति
यह सिद्धांत भावनाओं पर नहीं, शक्ति और हित पर आधारित है।
मुख्य शिक्षाएँ:
- शत्रु के मित्र को तोड़ो
- मित्र को मजबूत करो
- मध्यम राज्य को सम्मान दो
- उदासीन को कभी चुनौती मत दो
- पहले सुरक्षा, बाद में विस्तार
आधुनिक समय में प्रासंगिकता
- भू-राजनीति
- सैन्य गठबंधन
- कॉर्पोरेट रणनीति
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हर जगह मंडल सिद्धांत के तत्व स्पष्ट दिखते हैं।
कामन्दकीय नीतिसार का मंडल सिद्धांत: मध्यमा राज्य की रणनीति पढ़ें
निष्कर्ष
कामन्दकीय नीतिसार का मंडल सिद्धांत केवल प्राचीन राजनीति नहीं, बल्कि कालातीत यथार्थवाद है। यह सिखाता है कि सफल राजा वही है जो:
- यथार्थ को स्वीकार करे
- मित्र और शत्रु को पहचाने
- और सही समय पर सही नीति अपनाए
इसी कारण यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है।
प्रश्नोत्तर (FAQ)
मंडल सिद्धांत का मूल विचार क्या है?
राज्यों के संबंध भूगोल और हितों से तय होते हैं, भावनाओं से नहीं।
क्या शत्रु हमेशा स्थायी होता है?
नहीं। परिस्थितियाँ बदलते ही मित्र और शत्रु भी बदल सकते हैं।
मध्यमा राज्य की भूमिका क्या है?
वह शक्ति संतुलन बनाए रखता है और निर्णायक बन सकता है।