परिचय: क्या है मोक्ष?
जब जीवन के सभी भौतिक आकर्षण, दुख-सुख के चक्र, और जन्म-मरण की परिक्रमा से आत्मा थक जाती है, तब वह मोक्ष की ओर उन्मुख होती है। मोक्ष का अर्थ है—बंधन से मुक्ति, एक ऐसा अस्तित्व जहां आत्मा पूर्ण रूप से स्वतंत्र, शांत और परम आनंदमयी हो जाती है। यह केवल एक धार्मिक धारणा नहीं, बल्कि जीवन की परम उपलब्धि मानी जाती है।
पृष्ठभूमि: मोक्ष क्यों महत्वपूर्ण है?
“मोक्ष न मिले तो सब कुछ अधूरा है।”—योगदर्शन
मोक्ष की गहराई से समझ
मोक्ष की परिभाषा विभिन्न दर्शनों में
हिंदू दर्शन में मोक्ष
हिंदू शास्त्रों में मोक्ष का अर्थ है आत्मा की पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति। आत्मा ब्रह्म से एकरूप हो जाती है—यानी “अहं ब्रह्मास्मि” की अनुभूति।
प्रमुख सूत्र:
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वेदांत: आत्मा और परमात्मा की एकता।
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संख्य दर्शन: आत्मा की प्रकृति से अलगाव।
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योग दर्शन: चित्तवृत्तियों का निरोध ही मोक्ष है।
बौद्ध दृष्टिकोण
बौद्ध धर्म में मोक्ष को निर्वाण कहा गया है। यह एक ऐसी अवस्था है जहां इच्छाओं का अंत हो जाता है और दुख की जड़ (अविद्या) समाप्त हो जाती है।
जैन दर्शन में मोक्ष
जैन दर्शन में मोक्ष आत्मा की कर्म बंधन से पूर्ण मुक्ति है। आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाती है और सिद्धलोक में वास करती है।
“जब आत्मा कर्मों से मुक्त होती है, तब ही वह मोक्ष को प्राप्त करती है।”
मोक्ष के प्रकार
जीवन-मुक्ति
विदेह-मुक्ति
मृत्यु के बाद आत्मा संसार से पूर्णतया मुक्त हो जाती है और पुनर्जन्म नहीं होता।
मोक्ष की ओर जाने का मार्ग
ज्ञान मार्ग
भक्ति मार्ग
कर्म मार्ग
राज योग
योग के आठ अंगों का अभ्यास: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
मोक्ष की अनुभूति: क्या यह संभव है?
कुछ लोग मानते हैं कि मोक्ष केवल एक आत्मिक अनुभव है, जबकि कुछ लोग इसे बाहरी दुनिया से जुड़ी अवधारणा मानते हैं। आखिरकार, यह जीवन के उद्देश्यों में से एक है जो प्रत्येक व्यक्ति को आत्मा के शुद्ध रूप में मार्गदर्शन करता है।
“मोक्ष का अनुभव एक आंतरिक शांति है, जिसे केवल स्वयं महसूस किया जा सकता है।”
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