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ज्ञान और अज्ञान के द्वंद्व में माया का रहस्य — अद्वैत वेदांत की दृष्टि से |
अद्वैत वेदांत में माया का सिद्धांत: भ्रम से ज्ञान तक
परिचय
माया — ब्रह्मज्ञान की राह में सबसे बड़ी चुनौती
"माया नश्वर है, परंतु उसका प्रभाव अज्ञान से स्थायी प्रतीत होता है।"
पृष्ठभूमि
अद्वैत वेदांत और ब्रह्म की अवधारणा
माया इस दर्शन में वह शक्ति है जो ब्रह्म की सर्वव्यापकता और एकत्व को ढँक देती है, जिससे जीवात्मा स्वयं को ब्रह्म से भिन्न समझती है।
1. माया को संसार की अस्थायी शक्ति माना गया
माया की परिभाषा
2. माया के कारण आत्मा भ्रमित होती है
आत्मा का अज्ञान
माया आत्मा पर अज्ञान का पर्दा डालती है, जिससे वह अपने सच्चे स्वरूप (ब्रह्म) को भूल जाती है और खुद को शरीर या मन समझने लगती है।
केस स्टडी — "जीव और ब्रह्म"
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ब्रह्म: निराकार, शुद्ध चैतन्य।
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जीव: ब्रह्म ही है, परंतु माया से भ्रमित।
"जब आत्मा स्वयं को सीमित समझती है, तभी बंधन प्रारंभ होता है।"
3. माया से मुक्ति ज्ञान द्वारा संभव
ज्ञान ही मोक्ष का साधन
अद्वैत वेदांत के अनुसार ज्ञान ही वह यंत्र है जो माया के बंधन को काट सकता है।
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श्रवण (शास्त्रों का सुनना)
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मनन (चिंतन)
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निदिध्यासन (ध्यान) — ये तीन चरण आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं।
उदाहरण — "सूर्य का उदय"
जैसे अंधकार का अंत केवल प्रकाश से होता है, वैसे ही माया का अंत ब्रह्मज्ञान से ही संभव है।
4. संसार की वस्तुएं माया की छाया
दृश्य जगत का यथार्थ
माया का दोहरा स्वरूप
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आवरण शक्ति (Avarana Shakti): ब्रह्म को छिपाना
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विक्षेप शक्ति (Vikshepa Shakti): मिथ्या संसार की उत्पत्ति करना
"जगत सत जैसा लगता है, पर है नहीं। यह माया की लीला है।"
5. आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान
आत्मा = ब्रह्म
अद्वैत वेदांत का केंद्रीय संदेश है — आत्मा और ब्रह्म अलग नहीं हैं। माया के कारण ही यह विभाजन दिखता है।
जिज्ञासु के लिए मंत्र
"तत्त्वमसि" (तू वही है)यह उपनिषद् का महावाक्य है, जो बताता है कि जीव और ब्रह्म में कोई भिन्नता नहीं है।
निष्कर्ष
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माया अज्ञानजन्य शक्ति है
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आत्मा भ्रमित होकर संसार को सत्य मानती है
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आत्मज्ञान से ही माया का अंत संभव है
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आत्मा और ब्रह्म का एकत्व ही मोक्ष है
FAQs
"ज्ञान ही वह दर्पण है जिसमें आत्मा अपना असली रूप देख सकती है।"