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अद्वैत वेदांत में आत्मा और ब्रह्म – ज्ञान से माया का अंत और मोक्ष की ओर यात्रा का दृश्य |
अद्वैत वेदांत में आत्मा और ब्रह्म| माया, मोक्ष और ज्ञान का रहस्य
परिचय
"तत्वमसि" - तू वही है।
अद्वैत वेदांत कहता है कि आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं, भेद केवल माया का परिणाम है। इस लेख में हम जानेंगे कि अद्वैत वेदांत आत्मा, ब्रह्म, माया और मोक्ष को कैसे परिभाषित करता है, और यह विचारधारा हमें ज्ञान के मार्ग से मुक्ति की ओर कैसे ले जाती है।
पृष्ठभूमि: अद्वैत वेदांत का मूल
अद्वैत वेदांत की भूमिका
अद्वैत का मूल सूत्र
आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं
अद्वैत वेदांत का केंद्रीय सिद्धांत
जैसे समुद्र की एक लहर समुद्र से अलग नहीं होती, वैसे ही आत्मा ब्रह्म से अलग नहीं है।
महावाक्य- तत्वमसि
माया के कारण भ्रांति
माया - भ्रम की शक्ति
माया वह शक्ति है, जो एकता में द्वैत का भ्रम पैदा करती है।
माया के दो प्रमुख गुण
- आवरण शक्ति (Avarana) - सत्य को ढकती है
- विक्षेप शक्ति (Vikshepa)- असत्य का प्रक्षेप करती है
इसीलिए जीव अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है और स्वयं को सीमित मानने लगता है।
आत्मा की असल पहचान
आत्मा का स्वरूप
अद्वैत वेदांत कहता है कि आत्मा सत्-चित्-आनंद स्वरूप है:
- सत् - शाश्वत अस्तित्व
- चित् - चेतना
- आनंद - परम सुख
जब आत्मा माया से परे जाती है, तो वह समझती है कि वह ब्रह्म है - अजर, अमर और अखंड।
आत्मज्ञान की आवश्यकता
मोक्ष का मार्ग ज्ञान से
ज्ञान योग - अद्वैत का साधन
तीन चरणों का मार्ग
- श्रवण - वेदांत सुनना
- मनन - तर्क और विश्लेषण द्वारा उसे समझना
- निदिध्यासन - ध्यानपूर्वक आत्मसात करना
यह दिखाता है कि ज्ञान के साथ-साथ अनुभव भी आवश्यक है।
जगत की अस्थिरता
मिथ्या - न पूरी तरह सत्य, न असत्य
अद्वैत वेदांत के अनुसार, जगत को पूरी तरह असत्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अनुभव होता है, लेकिन वह स्थायी नहीं है।
जैसे सपना जागने पर खत्म हो जाता है, वैसे ही माया का संसार ब्रह्मज्ञान से समाप्त हो जाता है।
निष्कर्ष
FAQS
उत्तर: क्योंकि शुद्ध आत्मा का स्वरूप ब्रह्म के समान है – चेतन, शाश्वत और निराकार।
प्रश्न 2: माया क्या है?
उत्तर: माया वह शक्ति है जो ब्रह्म की वास्तविकता को छिपाकर जगत का भ्रम उत्पन्न करती है।
प्रश्न 3: मोक्ष कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: मोक्ष केवल ब्रह्म की सच्ची अनुभूति और आत्मज्ञान से ही संभव है।
प्रश्न 4: क्या अद्वैत वेदांत जगत को असत्य मानता है?
उत्तर: हाँ, वह इसे मिथ्या मानता है - जो दिखता है लेकिन स्थायी नहीं।
- अद्वैत वेदांत न केवल एक दर्शन है, बल्कि एक जीवित अनुभूति है - आत्मा को ब्रह्म के रूप में जानने की।
- जब हम यह समझते हैं कि हम अलग नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्म हैं, तब माया का पर्दा हटता है और हम मोक्ष, आनंद और शांति का अनुभव करते हैं।
पाठकों के लिए सुझाव
- प्रतिदिन थोड़े समय के लिए ध्यान (ध्यानपूर्वक “अहं ब्रह्मास्मि” का स्मरण) करें।
- उपनिषद और शंकराचार्य के ग्रंथों को पढ़ें।
- आत्मा और ब्रह्म के विषय में केवल बौद्धिक चर्चा नहीं, बल्कि अनुभवात्मक साधना भी आवश्यक है।
- जीवन के दुख-सुख को माया मानकर समभाव बनाए रखें।